केस 1: डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस (12436) से सफर कर रहे लखनऊ निवासी अनुराग उपाध्याय ने ट्रेन में घटिया खाने की शिकायत दर्ज कराई। बताया कि पानी जैसी दाल, सूखे व कड़े चावल और पापड़ जैसी रोटियां जो छूते ही टूट जाती हैं, खाने में दी गईं। उन्होंने इसकी फोटो रेलमंत्री को ट्वीट कर दी।
राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस के ये दो मामले तो महज उदाहरण हैं। ट्रेनों में परोसे जाने वाले खाने की गुणवत्ता पर आए दिन सवाल उठते हैं। इन शिकायतों पर विराम लगाने व यात्रियों को शुद्ध खाना परोसने के लिए ट्रेनों से पैंट्री कार हटाने का फैसला किया गया है।
अब ट्रेनों में खाना सप्लाई करने की जिम्मेदारी भारतीय रेलवे खानपान व पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) को दी जाएगी। इसका खाका तैयार किया जा रहा है। खास बात यह कि खाने की गुणवत्ता रेलवे नहीं, बल्कि बाहरी एजेंसी जांचेगी।ट्रेनों में खानपान के लिए नई कैटरिंग पॉलिसी बनाई गई है, जिसमें यात्रियों का खास ध्यान रखा गया है। नई योजना में आईआरसीटीसी को पूरी तरह से कैटरिंग का काम सौंपा गया है।
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जबकि अभी रेलवे की ओर से ट्रेनों में कैटरिंग की व्यवस्था ठेकेदार संभालते हैं। आईआरसीटीसी के अधिकारियों ने बताया कि पैंट्री कार में खाना बनाने के बजाय बेस किचन बनाए जाएंगे।
ट्रेन में होगी खाना गर्म करने की व्यवस्था
ये स्टेशन या उसके इर्दगिर्द ही होंगे। इस किचन में खाने के पैकेट बनाकर यात्रियों को दिए जाएंगे। इसे गर्म करने की व्यवस्था ट्रेन में होगी। मसलन, लखनऊ से दिल्ली के सफर में अगर यात्रियों को टूंडला में खाना परोसा जाना है तो वहां बेस किचन बनाया जाएगा।
आईआरसीटीसी सर्किल में झांसी से लेकर छपरा तक करीब ढाई सौ स्टेशन पड़ते हैं। इसमें से तकरीबन 40 से अधिक स्टेशनों पर बेस किचन तैयार किए जाएंगे। खास बात यह कि यात्रियों केलिए खाना पकाने का जिम्मा एक ठेकेदार संभालेगा तो डिस्ट्रीब्यूशन का काम दूसरी एजेंसी करेगी।ऐसे में शिकायतों पर कार्रवाई करना आसान हो जाएगा। जबकि अभी ठोस कार्रवाई करने पर पैंट्री कार ठप पड़ने की आशंका रहती है। स्टेशन के आसपास बेस किचन में खाना बनेगा और इसकी क्वालिटी रेलवे नहीं, बल्कि बाहरी एजेंसी जांचेगी।
हालांकि, अभी जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है, उसके अनुसार रेलवे बोर्ड सदस्य, जोनल व डिवीजन स्तर पर जांच की बात कही जा रही है। पर, इसमें फेरबदल किया जा रहा है। इस बाबत अंतिम निर्णय होना बाकी है।
जिन ठेकेदारों को पैंट्री कार आवंटित की जाती है, वे अधिक मुनाफा कमाने के फेर में कम से कम स्टाफ में काम चलाने का प्रयास करते हैं। इसका सीधा असर खाने की गुणवत्ता पर पड़ता है।
मसलन, यदि ट्रेन में 1,000 या 12,00 यात्री हैं तो खाना बनाने व परोसने के लिए केवल 15 से 20 लोगों का स्टाफ रखा जाता है। इससे ट्रेन में खाना बनाने का काम लगातार चलता रहता है और गुणवत्ता प्रभावित होती है।
अधिक दाम लेने पर होगी कार्रवाई
ट्रेनों में जहां खाने की खराब गुणवत्ता यात्रियों केलिए मुसीबत बनी हुई है, वहीं चाय-बिस्कुट से लेकर खाने का अधिक दाम वसूलना एक बड़ी समस्या है। नई कैटरिंग पॉलिसी में इससे निपटने के इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं।
लेकिन अधिकारियों की मानें तो अधिक कीमत की शिकायत मिलने पर जिस एजेंसी को ट्रेनों में सप्लाई का ठेका दिया जाएगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।‘ट्रेनों में पैंट्री कार हटाई जा रही है। कैटरिंग की पूरी जिम्मेदारी अब आईआरसीटीसी को दी जाएगी। इसमें दो स्तर पर काम होगा। पहला, बेस किचन तैयार करवाए जाएंगे, जहां यात्रियों के लिए खाना पकाया जाएगा। इसका ठेका एक एजेंसी को मिलेगा। दूसरा, ट्रेनों में खाने के पैकेटों की सप्लाई का काम दूसरी एजेंसी को दिया जाएगा। गुणवत्ता की जांच बाहरी एजेंसी करेगी। इस पर अंतिम निर्णय होना बाकी है।’ -अश्विनी श्रीवास्तव, मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक आईआरसीटीसी