14 अप्रैल 17….’ सत्य अमृत ही नहीं, विष भी…’इस पर मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा,” यह तो समझ में आ गया कि सत्य ही बोलना चाहिए और यदि आवश्यकता पड़े तो सत्य-असत्य के प्रयोग का निर्णय विवेकानुसार लेना चाहिए….पर क्या कोई और ऐसा अवसर है जहां सत्य विष बन जाता है।”
श्रीगुरुजी बोले,” है न! सत्य कौन कह रहा है, किससे कह रहा है, किस समय कह रहा है, किस तरीके से कह रहा है, कहाँ कह रहा है…यह सारी चीज़ें तय करती हैं कि सत्य अमृत है या विष …इनमें से अगर कोई condition पूरी नहीं हो रही, तो सत्य बोलने का परिणाम सुखद नहीं होता ।”
” Terms and conditions वाली बात तो मैं समझ गयी….पर सुना है कि सच बोलने से लोगों के रिश्ते खराब हो जाते हैं …तो क्या झूठ बोलना चाहिए….”
(उत्तर कल )