15 अप्रैल 17….कल से आगे….मैंने पूछा, ” सच बोलने से रिश्ते खराब हो जाते हैं ,तो क्या झूठ बोलना चाहिए ?”
श्रीगुरुजी बोले, ” अक्सर जो हम गलती करते हैं, वह यह है कि सत्य बोलने के नाम पर अतिस्पष्टवादी बन जाते हैं और भूल जाते हैं कि स्पष्टवादी होने का अर्थ क्रूरवादी होना नहीं होता।सत्य बोलने में अगर हमारी आवाज़ कर्कश हो, चेहरे की भाव- भंगिमा सख्त हो,मुस्कुराहट का पता न हो, आवाज़ ऊँची हो और विनम्रता से हम मुँह मोड़ चुके हों तो ऐसा सच कहने से हम महान नहीं बनते… हाँ… अकेले ज़रूर रह जाते हैं….।वैसे भी कहा गया है कि ऐसा सच नहीं बोलना चाहिए जो किसी को अप्रिय लगे…अब इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि झूठ बोलना चाहिए …..इसका अर्थ यह है कि व्यवहार- कुशलता के साथ सच बोलें…तभी हमारे रिश्ते खूबसूरत रह पाएंगे…।”
” सही कह रहें हैं आप…’ सच कड़वा होता है’…यह जुमला बोल-बोलकर ,नहीं तो , लोगों को कड़वा बोलने का license मिल जाता है…कुछ लोग यह भी कहते हैं कि’ हम स्पष्टवादी हैं, मुँह पर ही बोलते हैं, मन में कुछ नहीं रखते’…वो दरअसल ,खुद का मन खाली कर, दूसरे का दुख से भर देते हैं …..और स्पष्टवादी लोगों को सिर्फ स्पष्ट कहने की ही नहीं, स्पष्ट सुनने की भी आदत होनी चाहिए ….ठीक है न…?” मैंने पूछा ।
” खूब भालो “, ये बोले ।