22 अप्रैल 17…आश्रम के शुरुआती दिनों की बात है …एक बार ,एक व्यक्ति को मैंने किसी से कहते सुना, ” आश्रम का उद्देश्य , धार्मिक पुनर्जागरण है,यह तो हमें बता दिया गया पर उस दिशा में हम कर तो कुछ भी नहीं रहे…”।
मुझे यह सुनकर गुस्सा तो बहुत आया पर मैंने तुरंत react नहीं किया क्योंकि यह बात direct मुझे नहीं बोली गयी थी, मैंने सिर्फ सुनी थी। मैंने श्रीगुरुजी से इस बात की चर्चा की। उन्होंने कहा, ” ऐसे ही थोड़े न होता है पुनर्जागरण…. उसके लिए training चाहिए होती है, उसके लिए धैर्य चाहिए और उसके लिए शिष्य को गुरु पर विश्वास होना चाहिये…. यह सब कहते ही तो हैं,’ गुरुजी ‘, शिष्य कितने हैं, इनमें से?”
मैंने कहा,” तो आप उन्हें बता दीजिए कि धैर्य रखना आना चाहिए, यह training का एक part है, जिससे कि वे impatient न हों।”
ये बोले,” धैर्य रखना बोल कर नहीं सिखाया जाता, ऐसे ही सिखाया जाता है कि उद्देश्य बता दिया, अब खुद भी तो ढूंढो रास्ते, तैयारी करो,ज्ञान बढ़ाओ, स्वाध्याय करो, ध्यान करो, तप – बल, आत्म- बल बढ़ाओ…. धैर्य रखना सिखाया नहीं जाता, हाथ पकड़ कर A बनाना थोड़े ही सिखाना है…. यह परिस्थितियों में पड़ कर ही आता है…”
(हमारी यह चर्चा लंबी चली तो इसके आगे कल …)