पूर्वजन्म की हमारी चर्चा का एक और वृतांत सुनाती हूँ। मैंने पूछा – “आपने कहा कि हमारे पूर्वजन्म के कर्मों के फल हमें इस जन्म में भुगतने पड़ते हैं तो जो हमें इस जन्म में दुःख दे रहा है, इसका अर्थ यह हुआ कि वह हमें दंड देकर प्रभु कार्य कर रहा है, ….तो वह सही कर रहा है या अपना कर्म बुरा कर अपने लिए पाप संचित कर रहा है ?”
डायरी दिनांक 18.03.2017: गुरु माँ की डायरी से जानें अपने गुरु को
श्रीगुरु जी बोले, इसका उत्तर मैं एक उदाहरण से स्पष्ट करता हूँ ,” मान लो मैंने पूर्व जन्म में कोई बुरा कर्म किया जिसके दंडस्वरूप मुझे आर्थिक नुकसान होना है। अब मेरा मित्र मेरा 2 लाख रुपया लेकर चला जाए तो मुझे दंड तो मिला पर उसने अपना कर्म ख़राब कर लिया, वहीं अगर मेरे वो पैसे कहीं गिर जाएँ या व्यापार में मेरा नुकसान हो जाए तो दंड तो मुझे तब भी मिल गया पर किसी एक व्यक्ति के सर उसका पाप नहीं आया….और मुझे दंड मिलना है तो कुछ न कुछ अनहोनी होगी ही, यह तय है। ”
मेरी जिज्ञासा कुछ-कुछ शांत हुई तो कुछ-कुछ बढ़ गयी। मैंने पूछा – “आर्थिक नुकसान वाला angle तो बिलकुल clear हो गया जी, पर जो मन को ठेस पहुंचाते हैं, उसका क्या …..मेरा मतलब है… जैसे एक परिवार में एक बहू अपनी सास को दुःख पहुँचाती है तो बहू तो सास के पूर्व जन्मों के कर्मों का दंड ही तो दे रही है फिर उससे नफ़रत क्यों ?”
श्रीगुरु जी ने जो उत्तर दिया, वह मुझे रिश्तों की समझ दे गया….
कल बताऊँ तो कैसा रहेगा????