22 मार्च 17…आज सुबह श्रीगुरुजी college के लिए तैयार हो रहे थे…वहां से उन्हें studio जाना था तो ज़ाहिर है वापस आने में देर होनी ही है।अब अगर मुझे कुछ कहना – सुनना होता है तो भागती हुई घड़ी में से कुछ पल चुराने पड़ते हैं….तो कभी नाश्ते के समय, कभी ज़ीना उतरते हुए, यहाँ तक कि गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते हुए भी चीज़ें discuss होती हैं।

आज सुबह मैंने किसी बात पर इनसे कहा,” अच्छे काम के लिए लोग टूटकर क्यों नहीं आते? ” जवाब में इन्होंने जो कहा, वह किसी सूत्र से कम नहीं…।
” विचार 100% लोगों में आते हैं, चिंतन 50% लोग करते हैं, निष्कर्ष पर 25% पहुँचते हैं, उस पर अमल 1% करते हैं …पर अहंकार आते ही, वे भी बेकार हो जाते हैं , ” गाड़ी तक जाते हुए ये बोले।
” लो …अब ये 1% भी बेकार हो जाते हैं ….तो फिर क्या करना चाहिए ? ” मेरे माथे पर बल पड़ गए। गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते हुए ये बोले, ” फिर विचार दीजिये….लगे रहिये… हमारा तो काम ही यही है….अच्छा, आने में देर हो जायेगी…….”
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