26 अप्रैल 17….आज की diary लिखने से पहले, मैं कल की post पर मिली प्रतिक्रिया के लिए उन सभी को साधुवाद देना चाहती हूं जिन्होंने मुझे फोन कर, msg कर और यहां fb पर अपने कमैंट्स में देवी- देवताओं से मिली जानकारी को informative बताया और श्रीगुरुजी की बातों से सहमति जताई।आपकी ऐसी प्रतिक्रिया से मिले हौसले से पिछले शनिवार के एक संस्मरण को साझा कर रही हूं…
मैं कहीं से आश्रम आ रही थी, red light पर एक लड़का मेरी गाड़ी के पास आया और उसने खिड़की के शीशे से मुझे एक steel की बाल्टी दिखाई, जिसमें एक लोहे की पत्ती पड़ी हुई थी और उस पर टीका लगा था। मैंने उस लड़के को ग़ौर से देखा, मैले से कपड़े और सर को एक हाथ से खुजलाता हुआ वह, शायद कई दिनों से नहीं नहाया था…उसने मुझसे इशारे से उस बाल्टी में सिक्का डालने को कहा। मैंने थोड़ा सा शीशा नीचे किया और बोली,” मैं इसमें सिक्का नहीं डालूंगी ,पर तुम्हें सौ का नोट दूंगी,( मैंने purse खोलते हुए कहा), बस मुझे इतना बता दो कि यह बाल्टी में क्या है?” 100 रुपये के लालच में वह बोला, ” सीमेंट का जिससे पलस्तर करते हैं न, मरम्मत के वास्ते ,वही कन्नी है, मैंने औरों को देखा है हर शनिवार खूब बढ़िया धंधा करते हुए, तो आज मैंने भी कर लिया।” मैंने नोट का एक सिरा उसके हाथ में थमाते हुए कहा, ” फिर क्या करोगे इन पैसों से ?” उसने नोट पर मेरी भी पकड़ महसूस कर ली थी…उसने एक नज़र से signal की तरफ देखा और एक नज़र से मुझे….फिर जल्दी से बोला, “हम चिकन खाएंगे…,अब दे भी दो मैडम।” मैंने शीशा बंद किया और green light हो गयी थी, सो मेरी गाड़ी चल दी।( भीख और रिश्वत, दोनों मैं देती नही )
मैंने यह बात आश्रम पहुंचते ही श्रीगुरुजी को बताई। ” अच्छा, तो आज आप सौ रुपये में sting operation कर आयीं…..” ,इन्होंने हंसते हुए कहा ।
मैंने अपना जो प्रश्न इनके समक्ष रखा और जो उत्तर पाया …. वह 27 अप्रैल को।