27 मई 17…आज मैंने श्रीगुरुजी से पूछा,” **जो दिखता है, वह होता नहीं**, का कोई उदाहरण देंगे आप? “
श्रीगुरुजी बोले, ” अरे!बहुत आसान है।अपने आस- पास ही देख लो… जो मेरे -आपके सामने लोग दिखाते हैं, वे वैसे होते कहाँ हैं….मेरी – आपकी छोटी – मोटी ज़रूरतों से लेकर आश्रम में कुछ बड़ा काम/ दान करने तक number game ही तो है।”
मैं मन ही मन इनसे सहमत थी फिर भी इन्हें दुख न हो ,इसलिए बोली, ” पर सारे ऐसे नहीं… कुछ लोग सच में मुझसे- आपसे प्रेम करते हैं, इसलिए वे काम करते हैं।”
ये मुस्कुराए और बोले,” मेरे- आपके लिए अगर करते हैं तो यह बात क्यों नहीं समझते कि हमें ज़्यादा खुशी तब होगी जब वे हमारे मन की भावनाएं समझेंगे…आपस में एकजुट होंगे, एक दूसरे से प्रेम करेंगे, हमारा संबल बनेंगे…एक दूसरे से होड़ न करके, एक दूसरे को सहयोग देंगे, हमारा लक्ष्य पूरा करने में मदद करेंगे।”
इन्होंने जैसे मेरे भी मन की पीड़ा को शब्द दे दिए थे…मैंने अपनी आंखों के लाल डोरे छुपाते हुए कहा,” कर तो रहे हैं सब अपने- अपने ढंग से…. पर परिवर्तन आते- आते ही तो आएगा….मैं मानती हूं, कुछ लोग जो दिखाते हैं, वैसे हैं नहीं…पर अगर हम उन्हें सिखाएंगे तो धीरे- धीरे सब ठीक हो जाएगा….।”
(आंखों के कोर के साथ- साथ मन भी गीला हो गया है, सो इसके आगे कल ही बता पाऊंगी…)