27 मार्च 17…कल रात थोड़ा अस्वस्थ महसूस कर रही थी । सुबह श्रीगुरुजी ने देख कर कहा, ” लग रहा है कि आपका मन ठीक नहीं? ”
” कुछ लोग सौम्य, सीधे …और उससे भी महत्वपूर्ण ….स्नेही और समर्पित दिखते हैं, पर उनका सत्य जान लेने पर जो द्वन्द उठता है, बस उसी से गुज़र रही हूँ…”, मैंने अपनी पीड़ा उड़ेल कर रख दी।
ये बोले,” उनकी कमियों को देखती रहो, indirectly समझाती भी रहो पर उन्हें ज़ाहिर यही करो कि हम उन्हें अच्छा, बहुत अच्छा समझते हैं….”
” इससे क्या होगा? ” मुझे यह उत्तर थोड़ा अटपटा लगा।
” जैसे बच्चा कभी – कभी सोने की acting करते – करते सच में सो जाता है , शायद हमारे सामने अच्छे बनने की acting करते – करते , आदत पड़ जाए और सच में वे अच्छे हो जाएं।” इन्होंने electric kettle से मुझे गुनगुना पानी देतेे हुए कहा ।
…..इस युक्ति को जब से सुना है, तब से थोड़ा अच्छा महसूस कर रही हूँ…,चलो यह भी आज़मा कर देखते हैं…