8 अप्रैल 17…बात तब की है जब माननीय अशोक सिंघल जी का स्वास्थ्य खराब चल रहा था।श्रीगुरुजी उनको देखने कई बार उनके निवास पर गए और दोनों वहां भी घंटों देश के हालात पर चिंता – चर्चा करते। एक दिन इनके पास सूचना आयी कि माननीय सिंघल जी का स्वास्थ्य बहुत खराब है…।

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पर ये उस दिन उनसे मिलने नहीं गए, बस चुपचाप आश्रम में ऊपर मंदिर में चले गए और वहां प्रार्थना करने लगे।मैं पीछे- पीछे मंदिर में गयी और बोली, ” आज आप उन्हें देखने नहीं गए?”
ये बोले,” अगर मैं जाऊंगा तो हमारी चर्चा फिर छिड़ जाएगी…उनकी ऊर्जा व्यर्थ होगी और उन्हें अभी ऊर्जा की अत्यधिक आवश्यकता है।”
“जी, कह तो आप ठीक रहे हैं… पर अचानक इतने लोगों के बीच से उठकर, आप मंदिर क्यों चले आये?”
ये बोले,” मुझे हर उपयोगी जीवन के स्वास्थ्य की कामना रहती है…. बस उसी कामना से माँ के पास आ गया….(थोड़ा ठहर कर वो बोले )…पर लगता है अब ईश्वर को कुछ और उपयोगी जीवन गढ़ने होंगे और यह प्रक्रिया भी तेज़ करनी होगी…”
मैं आशय समझ गयी …..पर इनका यह वाक्य मन में छप गया – ‘ मुझे हर उपयोगी जीवन के स्वास्थ्य की कामना रहती है ।’
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