भगवान विष्णु का दिन गुरूवार माना जाता है, इस दिन अगर आप भगवान विष्णु जी कि पूजा-अर्चना करते है, तो इसका फल आपको जरूर मिलेगा। लेकिन यहां पर आज हम आपसे गुरूवार को की जाने वाली पूजा के बारे में नहीं बल्कि भगवान विष्णु से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में चर्चा करने वाले हैं, जिसके बारे में शायद आप भी नहीं जानते होगें। दअरसल हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु को हरि के नाम से भी जाना जाता है, इतना ही नहीं इन्हे हरि नाराण के नाम से भी पुकारा जाता है। तो क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि भगवान विष्णु को हरि क्यों कहा जाता है? अगर आप भी इस बात से अंजान हैं, तो यहां पर आज हम इसी विषय से जुड़ी एक पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे है, जिससे हमे इस बात का पता चलेगा कि भगवान विष्णु कैसे हरि बन गये?
पालनहार भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्त नारद मुनि उन्हें नारायण कहकर ही बुलाते हैं। तीनों लोकों में नारद मुनि भगवान को नारायाण-नारायण कह कर पुकारते हैं। भगवान विष्णु का निवास क्षीर सागर में है। वो शेषनाग के ऊपर शयन करते हैं। उनके चार हाथ है। जिसमें वह अपने नीचे वाले बाएं हाथ में कमल, अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में कौमोदकी,ऊपर वाले बाएं हाथ में शंख, और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्रधारण करते हैं। भगवान विष्णु के भक्त उन्हें कई नामों से बुलाते हैं। कोई उन्हें कहता है अनन्तनरायण, तो कोई लक्ष्मीनारायण। कोई शेषनारायण से उन्हें पुकारता है।
नारायण बनने की कथा
इन सभी नामों में नारायण जुड़ा रहता है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार जल भगवान विष्णु के पैरों से प्रकट हुआ था। भगवान विष्णु के पैर से बाहर आई गंगा नदी को विष्णुपदोदकी के नाम से जाना जाता है। जल को नीर या नर नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु भी पानी में रहते हैं इसलिए नर से उनका नाम नारायण बना। पानी के अंदर रहने वाले भगवान। भगवान विष्णु को हरि नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू पुराणों की माने तो हरि का मतलब हरने वाला या चुराने वाला होता है। हरि हरति पापणि इसका मतलब है, हरि वो भगवान हैं, जो जीवन से पाप और समस्याओं को समाप्त करते हैं।