श्रीकृष्ण की राधा से पहली मुलाकात तब हुई जब वह ओखली में बंधे हुए थे। कृष्ण मां यशोदा से कहते हैं, ‘एक लडक़ी मेरे पास आई। तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी।

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उस पल से मैं ही उसके जीवन का आधार बन चुका हूं। मैं विवाह भी राधा से ही करूंगा।’ यह बात कान्हा अपनी मां यशोदा से कहते हैं। इस प्रसंग के बारे में हमारे पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।
लेकिन मां यशोदा, कान्हा की इस बात का उत्तर देते हुए कहती हैं, ‘राधा तुम्हारे लिए ठीक लडक़ी नहीं है, इसकी वजह है कि एक तो वह तुमसे 5 साल बड़ी है, दूसरा उसकी मंगनी पहले से ही किसी और से हो चुकी है।
जिसके साथ उसकी मंगनी हुई है, वह कंस की सेना में है। वह कुलीन घराने से भी नहीं है। वह एक साधारण ग्वालन है और तुम मुखिया के बेटे हो। हम तुम्हारे लिए अच्छी दुल्हन ढूंढेंगे।’
जब यह बात नंद बाबा को पता चली तो वह कान्हा को गुरु गर्गाचार्य के पास ले गए। गुरुजी ने कृष्ण को समझाया, ‘तुम्हारे जीवन का उद्देश्य अलग है।
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इस बात की भविष्यवाणी हो चुकी है कि तुम मुक्तिदाता हो। इस संसार में तुम ही धर्म के रक्षक हो। इस तरह राधा का विवाह कृष्ण के साथ न हो सका।
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