वैदिक काल स्त्रियों के लिए स्वर्ण युग था, यह कहना प्रचीन ग्रंथों के अनुसार बिल्कुल भी गलत नहीं है। लेकिन बाद के समय में स्त्रियों के लिए कठोर नियम बनाए गए और उनकी आजादी को छीनने की कोशिश की गई।

आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव का मानना है कि, ‘स्त्रियां शारीरिक रूप से पुरुषों की अपेक्षा कमजोर होती हैं, सिर्फ यही कारण था कि पुरुषों ने उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर बनाने और आध्यात्मिक रूप से सशक्त न होने देने के लिए वो सब कुछ किया, ताकि वे आर्थिक रूप से ताकतवर न बन सकें।
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हजारों सालों से लोगों की यही मानसिकता रही है। यह सब केवल इसलिए हुआ, क्योंकि स्त्रियां शारीरिक रूप से पुरुषों से कमज़ोर होती हैं।’
इसी बात को इंगित करता एक बेहद रोचक प्रसंग स्वामी विवेकानंद से जुड़ा हुआ है। एक बार विवेकानंद जी के पास एक समाज सुधारक आया। और उसने स्वामी जी से कहा, ‘मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि आप स्त्रियों के समर्थक हैं। लेकिन मैं उनके लिए कुछ बेहतर करना चाहता हूं।’
स्वामी जी को यह ठीक नहीं लगा और उन्होंने कहा, ‘दूर रहो उनको जो करना है वो कर लेंगी। क्योंकि मनोवैज्ञानिक रूप से स्त्रियां ज्यादा समर्थ हैं। वैदिक काल से ही ऐसी अनेक स्त्रियां रही हैं जो महान संत थीं, जिन्होंने चेतना की ऊंचाइयों को हासिल किया।
जैसे आज ब्राह्मण जनेऊ पहनते हैं, उसी तरह से वैदिक काल में स्त्रियां भी जनेऊ पहनती थीं। वे भी जनेऊ पहनने के योग्य थीं, क्योंकि उस वक्त जनेऊ पहने बिना वेद और उपनिषद पढऩे की अनुमति नहीं थी। ऐसी कई महान संत-साध्वी हुई हैं। इनमें से मैत्रेयी भी एक हैं।’
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हालांकि भारत में कहीं-कहीं यह परंपरा चलती रही है, जैसे बिहार के बक्सर जिले के मैनिया गांव में पिछले तीन दशक से लड़कियों का उपनयन संस्कार कराया जाता है। लेकिन यह अपवाद ही है
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