ये तीन चीजें बढ़ाती हैं खूबसूरती
नख से शिख तक आभूषण पहनने का रिवाज यहां शादी, पूजा और उत्सवों में आज भी प्रचलित है। शरीर के अंगों में विभिन्न प्रकार के ये आभूषण उसकी शोभा में चार चांद लगते हैं। माथे में बोरला, शीश फूल, रावड़ी और मांगटीका मुख्य हैं। रावड़ी को सुहाग चिह्न माना जाता है। चेहरे की सुंदरता के लिए अलग से कोई आभूषण नहीं है। आमतौर पर जो प्रांतों में पहनते हैं, लौंग-नथ और बुलाक। बुलाक ग्रामीण महिलाएं पहनती हैं। कानों में कर्णफूल और झुमका बहुत लोकप्रिय है। पीपल पत्रा कान के ऊपरी हिस्से में छेद करके पहनते हैं। यह रिंग के आकार का होता है। गांव की महिलाएं ही नहीं, बल्कि आजकल की लड़कियां भी कान में छेद कराके बहुत शौक से पहनती हैं।
पंचलड़ी अलंकार
गले में हार, जो छाती तक लटकता है, काफी लोकप्रिय अलंकार है। पंचलड़ी अलंकार में नगीने से जड़ी लड़ियां लटकती रहती हैं। बाजूबंद, पहुंची, कड़ा, हथफूल, चूड़ी आदि में रत्नों की जड़ाई की कलात्मकता देखते ही बनती है। कमर में पहनी जाने वाली करधनी, हर छोटे-बड़े अवसर पर बड़े चाव से पहनी जाती है। पैरों में पहने जाने वाले आभूषणों में पाजेब, पायल, बिछुआ प्रमुख हैं। हालांकि प्राचीन और आधुनिक शैली में अब अंतर आ गया है, लेकिन आभूषणों को पहनते समय यहां उम्र का जरूर ध्यान रखा जाता है।