भले ही पहले की तरह लोग भारी-भरकम गहने नहीं पहनना चाहते, लेकिन साउथ इंडियन और राजस्थानी जेवरों की डिजाइन को आज भी हल्के मेटल पर बनवाकर पहना जा रहा है। महिलाएं सिर्फ शादी या पूजा-पाठ नहीं, महिलाएं मॉडर्न परिधान पर भी इन जेवरों को पहन रही हैं। कई सेलिब्रिटीज ने हाल ही में जींस-टॉप के साथ भारी झुमके, गाउन के साथ पंचलड़ी हार या फिर स्लीवलेस टॉप के साथ जड़ाऊ कंगन पहनकर ‘फ्यूजन’ ट्रेंड शुरू किया है।
मीना, कुंदन और जड़ाऊ का तोड़ नहीं
पहनावे से खानपान तक में राजस्थानी शैली का अपना ही रंग-ढंग है। आज भी यहां के लोग अपने परंपरागत परिधानों में नजर आते हैं। बात अगर राजस्थानी आभूषणों की हो, इसका भी अंदाज कुछ अलग ही नजर आता है। यहां के आभूषणों में मुगलकालीन प्रभाव दिखता है। या यूं कहें कि यहां का आभूषण शिल्प उतना ही प्राचीन है, जितना कि परंपराओं का इतिहास। मीना, कुंदन और जड़ाऊ स्वर्ण आभूषणों के लिए जयपुर आज भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। इन कलात्मक आभूषणों का वर्णन राजस्थान के प्राचीन साहित्य में उपलब्ध है। कई लोकगीत तो आभूषणों को लेकर ही रचे गए हैं।
बढ़ रहा है हल्के और नकली जेवरों का चलन
वाणी शर्मा जयपुर में आभूषणों का काम करती हैं। उनका मानना है कि अलंकारों के डिजाइन तो वही बनते हैं, लेकिन आज के जेवर बहुत ही हल्के हो गए हैं। अब धीरे-धीरे शहर में हल्के और नकली जेवरों की मांग बढ़ रही है। महिलाएं शादियों के अतिरिक्त रोजमर्रा की जिंदगी में भारी आभूषण पहनना पसंद नहीं करती हैं। नकली आभूषणों में नग लगे जेवर अधिक पसंद किए जा रहे हैं।
ये तीन चीजें बढ़ाती हैं खूबसूरती
नख से शिख तक आभूषण पहनने का रिवाज यहां शादी, पूजा और उत्सवों में आज भी प्रचलित है। शरीर के अंगों में विभिन्न प्रकार के ये आभूषण उसकी शोभा में चार चांद लगते हैं। माथे में बोरला, शीश फूल, रावड़ी और मांगटीका मुख्य हैं। रावड़ी को सुहाग चिह्न माना जाता है। चेहरे की सुंदरता के लिए अलग से कोई आभूषण नहीं है। आमतौर पर जो प्रांतों में पहनते हैं, लौंग-नथ और बुलाक। बुलाक ग्रामीण महिलाएं पहनती हैं। कानों में कर्णफूल और झुमका बहुत लोकप्रिय है। पीपल पत्रा कान के ऊपरी हिस्से में छेद करके पहनते हैं। यह रिंग के आकार का होता है। गांव की महिलाएं ही नहीं, बल्कि आजकल की लड़कियां भी कान में छेद कराके बहुत शौक से पहनती हैं।
पंचलड़ी अलंकार
गले में हार, जो छाती तक लटकता है, काफी लोकप्रिय अलंकार है। पंचलड़ी अलंकार में नगीने से जड़ी लड़ियां लटकती रहती हैं। बाजूबंद, पहुंची, कड़ा, हथफूल, चूड़ी आदि में रत्नों की जड़ाई की कलात्मकता देखते ही बनती है। कमर में पहनी जाने वाली करधनी, हर छोटे-बड़े अवसर पर बड़े चाव से पहनी जाती है। पैरों में पहने जाने वाले आभूषणों में पाजेब, पायल, बिछुआ प्रमुख हैं। हालांकि प्राचीन और आधुनिक शैली में अब अंतर आ गया है, लेकिन आभूषणों को पहनते समय यहां उम्र का जरूर ध्यान रखा जाता है।