नेकां अध्यक्ष सांसद डा. फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र के विशेष वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा तभी सफल हो सकते हैं जब जम्मू-कश्मीर के दौरे की उनकी फाइनल रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाए।
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नई दिल्ली अपने वार्ताकार के अधिकारों और उद्देश्यों को स्पष्ट करें। शर्मा के राज्य के दौरे के दौरान ही केंद्र के नुमाइंदे अलग-अलग बयानबाजी कर रहे थे। नई दिल्ली से वार्ता का ज्यादा तुक नहीं बनता है।
कश्मीर मसले पर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को वार्ता में शामिल किया जाना जरूरी है। दोनों देशों को बार्डर पर बेवजह मारे जा रहे लोगों की जान की सलामती के लिए आगे आना चाहिए।
डा. फारूक ने कहा कि पूर्व की वार्ताकारों की रिपोर्ट गृह मंत्रालय में धूल चाट रही हैं। रिपोर्ट ने दिन की रोशनी नहीं देखी। पूर्व यूपीए सरकार ने तीन सदस्यीय वार्ताकार भेजे थे। इसमें 2012 में रिपोर्ट में स्वायत्तता पर जोर दिया गया।
शर्मा के अधिकारों को लेकर भ्रम का स्थिति रही। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। यह राज्य के लोगों के हितों से जुड़ा है। इसे हटाने से रियासत में हालात खराब होंगे।
उन्होंने सेना अध्यक्ष जनरल विपिन रावत की राजनीतिक बयानबाजी पर आपत्ति जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की मांग की। कहा कि ऐसी बयानबाजी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। वह बार्डर और सेना के कल्याण पर ध्यान दें।
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