यह न सिर्फ देसी प्रजातियों को नुकसान पहुंचा रही हंै, बल्कि यमुना के पारिस्थितिकी तंत्र की प्रक्रियाओं में बाधा भी पैदा कर रहीं हैं।
यमुना नदी में कॉमन कार्प, थाई कैटफिश और नील तिलापिया जैसी विदेशी मछलियों की प्रजातियां तेजी से बढ़ रही हैं। यह न सिर्फ देसी प्रजातियों को नुकसान पहुंचा रही हंै, बल्कि यमुना के पारिस्थितिकी तंत्र की प्रक्रियाओं में बाधा भी पैदा कर रहीं हैं। इससे जैविक वातावरण बदलता है, आवास घटता है और प्रदूषण बढ़ता है। ये वजहें अक्सर दसी प्रजातियों की आबादी को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। विदेशी मछलियां आक्रामक क्षेत्रीय व्यवहार प्रदर्शित करती हैं। इससे देशी मछलियों की संख्या में गिरावट आती है।
यह खुलासा प्रयागराज के केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान केंद्र (सीआईएफआरआई) की ओर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में जवाब के ताैर पर दाखिल की गई एक रिपोर्ट से हुआ है। यमुना में मछलियों की स्थानीय प्रजातियों में आ रही कमी और विदेशी प्रजातियों में हो रही वृद्धि के मामले में सुनवाई के दाैरान पेश इस रिपोर्ट के बाद एनजीटी ने केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के साथ-साथ जल शक्ति मंत्रालय से इस पर चार सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है।
126 प्रजातियां मिली
वर्ष 2020 से 2024 तक किए गए एक अध्ययन पर आधारित सीआईएफआरआई की इस रिपोर्ट के अनुसार, नदी में नौ स्थानों से लिए नमूनों से 34 प्रकार की मछलियों की 126 प्रजातियां मिली हैं।
1990 के आसपास िदखने लगी थीं विदेशी मछलियां
वर्ष 1958 से 1966 के बीच पकड़ी गई मछलियों में विदेशी मछलियां नहीं थीं। 1990 के आसपास ये दिखाई देने लगीं। 1997 से 1999 के बीच यमुना नगर में पकड़ी गई मछलियों में कॉमन कार्प की हिस्सेदारी 6.5 फीसदी थी तो मथुरा में बढ़कर लगभग 40 फीसदी हो गई। प्रयागराज में 2002 से 2015 के बीच कॉमन कार्प सालाना 20.81 से 60.29 टन पकड़ी जाने लगीं।
यमुना के प्रदूषण में 80% हिस्सा दिल्ली का
रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण और उदासीनता ने दिल्ली की जीवनरेखा यमुना को सीवर में बदल दिया है। हर साल लाखों देसी मछलियां मर जाती हैं। यह सब जलवायु संकट को बढ़ावा देता है। यमुना नदी का सिर्फ 22 किलोमीटर यानी बमुश्किल 1.6 फीसदी हिस्सा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से होकर बहता है। लेकिन, इस छोटे से हिस्से में बहाया जाने वाला कचरा और जहर 1,376 किलोमीटर लंबी नदी में मौजूद प्रदूषण का लगभग 80 फीसदी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यमुना मछलियों की सबसे कम प्रजातियां दिल्ली के आईटीओ के पास मिली हैं।
गाद, बांध और बैराज की वजह से पहुंचा नुकसान…
1997 से 99 के बीच पकड़ी गई मछलियों में महासीर की हिस्सेदारी करीब नौ फीसदी थी। 2023-24 में घटकर यह सिर्फ 1.7% रह गई है। यह गिरावट संभवतः गाद और बांध के कारण आई है। इसकी वजह से मछलियों के प्रजनन और भोजन क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा तथा इनका प्रवास अवरुद्ध हो गया है। 1999 में हथिनीकुंड बैराज के निर्माण के बाद से महासीर के आकार और आबादी में तेजी से गिरावट आई है।
हरियाणा को नोटिस जारी कर एनजीटी ने मांगा जवाब
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बुराड़ी इलाके में यमुना किनारे सैकड़ों मछलियों के मरने के मामले में हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अधिकरण ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट पर विचार करते हुए यह कार्रवाई की है। डीपीसीसी ने अदालत को सौंपी रिपोर्ट में हरियाणा के जिम्मेदार बताया था।
अदालत ने मीडिया रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया था। अधिकरण ने डीपीसीसी को घटनास्थल का निरीक्षण करने के निर्देश दिए थे। एनजीटी अध्यक्ष न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने हरियाणा के सचिव, पर्यावरण और हरियाणा के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों को नोटिस जारी किए। साथ ही छह सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए। अधिकरण ने कहा कि अन्य सभी प्रतिवादी भी इस दौरान अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं। मामले में अगली सुनवाई 21 मार्च, 2025 को होगी।