हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में देवर्षि नारद को देवताओं के मुख्य दूत के रूप में बताया गया है। क्योंकि देवर्षि नारद का मुख्य कार्य देवताओं के बीच सूचना पहुंचाना ही है।
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देवर्षि नारद हाथ में वीणा लिए हुए तीनों लोकों से (पृथ्वी, आकाश और पाताल) हर प्रकार की ख़बरों का आदान-प्रदान देवताओं को करते है। जिस कारण उन्हें ब्रह्मांड का पहला पत्रकार कहा गया है। साथ ही देवर्षि नारद ब्रह्मांड की बेहतरी के लिए वह विश्वभर में भ्रमण करते रहते हैं। इनसे कुछ भी छिपा नहीं रह सकता है।
शास्त्रों के अनुसार देवर्षि नारद ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। इन्होने कठोर तपस्या करके ब्रह्म-ऋषिज् का पद प्राप्त किया और भगवान नारायण के परम भक्त कहलाए। जिसके बाद से इनका मुख्य उद्देश्य प्रत्येक भक्त की पुकार को भगवान तक पहुंचाना हो गया।
भगवान विष्णु के परम भक्त देवर्षि नारद को अमरत्व के वरदान के साथ तीनों लोकों में कहीं भी, कभी भी, किसी भी समय प्रकट होने का वरदान प्राप्त है।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में श्री नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय देते हुए उन्हें वेद, उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, पुराणों के ज्ञाता, आयुर्वेद व ज्योतिष के प्रकांड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, नीतिज्ञ, कवि, महापंडित, योगबल से समस्त लोकों के समाचार जानने की क्षमता रखने वाले, सदगुणों के भंडार, आनंद के सागर, समस्त शास्त्रों में निपुण, सबके लिए हितकारी और सर्वत्र गति वाले देवता कहा गया है।
प्राचीन काल से ऐसा कहा जाता है कि देवर्षि नारद एक हाथ में वीणा वादन करते हुए और मुख से नारायण-नारायण का उच्चारण करते हुए जब भी किसी सभा में पहुंचते हैं। तो इसका एक ही अर्थ होता है नारद जी कोई संदेश लेकर आए हैं।
इसके साथ ही इनकी वीणा का बजना शास्त्रों में शुभता का प्रतीक माना गया है। जिस कारण आज के दिन यानि नारद जयंती पर वीणा का दान किसी भी अन्य दान से श्रेष्ठ माना गया है।
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