दुर्लभ बीमारियों के लिए केंद्रीय मदद की सीमा पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) जैसी दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए केंद्रीय सहायता की 50 लाख रुपये की सीमा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को विचार करने का फैसला किया।

पीठ ने कही ये बात
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि इन याचिकाओं पर जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली पीठ 13 मई से शुरू होने वाले हफ्ते में सुनवाई करेगी।

पीठ ने कहा कि एसएमए की दवा रिस्डिप्लाम बनाने वाली कंपनी एफ हाफमैन-ला रोश लिमिटेड ने इस बीमारी से पीड़ित केरल की 24 वर्षीय सीबा पीए को एक वर्ष दवा मुफ्त देने पर सहमति दी है। दवा की एक बोटल 6.2 लाख रुपये की है। शीर्ष अदालत ने 24 फरवरी को केंद्र की अपील पर हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी।

केंद्र ने कहा था कि उसे 50 लाख रुपये की सीमा पार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील पर भी गौर किया था कि एसएमए रोगी के इलाज का खर्च 26 करोड़ रुपये तक हो सकता है और पाकिस्तान व चीन में रिस्डिप्लाम के दाम काफी कम हैं।

महिला सुरक्षा पर लोगों की सोच बदलें : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और दुष्कर्म के खतरे को कम करने के लिए लोगों की सोच बदलनी होगी क्योंकि ये खतरा शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में सब जगह है। इसके लिए सर्वोच्च अदालत ने शिक्षा में बदलाव के साथ ही शिक्षा प्रणाली से दूर और बाहर हो चुके लोगों को सुधारने के लिए केंद्र सरकार को उचित उपाय करने को कहा है।

सुनवाई छह मई तक के लिए स्थगित
सर्वोच्च अदालत ने इस संबंध में केंद्र सरकार को एक विस्तृत हलफनामा दायर करने के लिए तीन हफ्ते का समय देकर सुनवाई छह मई तक के लिए स्थगित कर दी है।जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि महिलाओं को अकेला छोड़ दीजिए। उन्हें अपने चारों तरफ हेलीकाप्टर नहीं चाहिए। उन्हें निगरानी व रोकटोक की जरूरत नहीं। उन्हें पनपने दीजिए, इस देश की महिलाएं यही चाहती हैं।

महिलाओं में खुले में शौच जाने के दौरान होती है परेशानी
खंडपीठ ने कहा कि उन्हें वास्तवित जीवन में ऐसे मामले देखे हैं कि महिलाओं में खुले में शौच जाने के दौरान मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अभी भी गांवों में शौचालयों की सुविधा नहीं है। अधिवक्ता आदाब हर्षद पोंडा की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इस दिशा में शिक्षा और जनजागरूकता के मुद्दे को उठाया है।

देश में दुष्कर्म समेत विभिन्न अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं
याचिका में बताया गया कि महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म समेत विभिन्न अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। इस पर केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा की व्यवस्था है। याचिका में विज्ञापन, सेमिनारों, पर्चों के जरिये केंद्र को स्थानीय प्रशासन को दिशा-निर्देश देने को कहा गया है। शिक्षा के दायरे से बाहर जा चुके लोगों को भी सुधारने की सलाह दी गई है।

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