दिल्ली की केजरीवाल सरकार दुर्लभ और अनुवांशिक बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए 100 करोड़ रुपये का कोष बनाएगी. इसमें दिल्ली सरकार 40 फीसदी खर्च करेगी, जबकि 60 फीसदी खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी. इस कोष का उपयोग सिर्फ पूरी इलाज लागत के वित्तपोषण पर होगा. हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने यह जानकारी दी.
इस पर दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि अदालत को उम्मीद है कि दिल्ली मंत्रिमंडल दुर्लभ बीमारियों के वास्ते कोष के गठन को जल्द मंजूरी देगी, जैसा कि प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) की अध्यक्षता में 29 जनवरी को हुई एक बैठक के विवरण में बताया गया है. दरअसल, हाईकोर्ट में सचिव नाम की महिला ने अपनी बेटी के साथ ही इस बीमारी से पीड़ित देशभर के करीब 122 मरीजों के नि:शुल्क इलाज की मांग को लेकर याचिका दायर की है, जिस पर फिलहाल सुनवाई हो रही है.
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उसकी बेटी को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (Spinal Muscular Atrophy) नामक दुर्लभ बीमारी है. इस बीमारी में हड्डी बनने में दिक्कत होती है. याचिकाकर्ता ने कहा कि नागरिकों को इलाज मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है. ऐसे में अगर इस तरह की दुर्लभ और अनुवांशिक बीमारियां उन लोगों को है, जो इतना महंगा इलाज नहीं करा सकते हैं, तो यह दायित्व फिर सरकार का ही बनता है.
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि भारतीय कर्मचारी भविष्य निधि योजना के अस्पतालों में उनकी बेटी का इलाज नहीं किया गया और वह इसका इलाज कराने में सक्षम नहीं है. इस पर कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को न सिर्फ तत्काल इन बच्चों के इलाज कराने का आदेश दिया है, बल्कि दो सप्ताह के भीतर दुर्लभ रोग बोर्ड बनाने के भी निर्देश दिए.
कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सरकार दिमाग में यह बात रखेगी कि केंद्र सरकार द्वारा पहले गठित 100 करोड़ रुपये के कोष का समय 31 मार्च 2018 को खत्म हो जाएगा. वहीं, दिल्ली सरकार के वकील रमेश सिंह ने अदालत को बताया कि इसके लिए एक तकनीकी सह प्रशासनिक समिति भी बनाई जाएगी. अब मामले की अगली सुनवाई आठ मार्च को होगी.