प्राचीन काल से सनातन परम्परा और हिंदू धर्म के प्रचार और प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका आदि शंकराचार्य की मानी जाती है. यही वजह है कि देश के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठ हैं.
ये मठ पूर्व में गोवर्धन, जगन्नाथपुरी (उड़ीसा), पश्चिम में शारदामठ (गुजरात) उत्तर में ज्योतिर्मठ, बद्रीधाम (उत्तराखंड) और दक्षिण में शृंगेरी मठ, रामेश्वर (तमिलनाडु) में है.
बताया जाता है कि ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में ये चारों मठ स्थापित किये गए थे. आज भी इन्हें चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में चलाया जाता है. इन मठों के अलावा आदि शंकराचार्य ने बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी.
गौरतलब है कि इन मठों में गुरु शिष्य परम्परा का निर्वहन होता है. पूरे भारत से संन्यासी अलग-अलग मठ से जुड़े होते हैं. यहां उन्हें संन्यास की दीक्षा दी जाती है.
सबसे ख़ास बात यह कि संन्यास लेने के बाद दीक्षा लेने वालों के नाम के साथ दीक्षित विशेषण भी लगाने की परंपरा है. माना जाता है कि यह विशेषण लगाने से यह संकेत मिलता है कि संन्यासी किस मठ से है और वेद की किस परम्परा का वाहक है.
आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में सबसे योग्यतम शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी प्रचलित है.
जो भी इन मठों का मठाधीश बनता है वह शंकराचार्य कहलाता है और अपने जीवनकाल में ही अपने सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी बना देता है.
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