धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन महादेव के निमित्त व्रत उपवास करने से दूर होंगे सभी दुख
April 2, 2023
कल सोम प्रदोष व्रत है। यह पर्व हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की विधि विधान पूर्वक भक्ति उपासना की जाती है। सोमवार के दिन पड़ने के चलते यह सोम प्रदोष व्रत कहलाएगा। धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन महादेव के निमित्त व्रत उपवास कर उनकी पूजा करते हैं। उनकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। साथ ही सभी प्रकार के दुख और संकट से निजात मिलता है। अगर आप भी अपने जीवन में तरक्की और उन्नति पाना चाहते हैं, तो पूजा के समय शिव चालीसा का पाठ करें। साथ ही पूजा के अंत में आरती कर महादेव से सुख, समृद्धि, यश, कीर्ति और वैभव की अवश्य कामना करें-
॥दोहा॥श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥जय गिरिजा पति दीन दयाला।सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥भाल चन्द्रमा सोहत नीके।कानन कुण्डल नागफनी के॥अंग गौर शिर गंग बहाये।मुण्डमाल तन छार लगाये॥वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।छवि को देख नाग मुनि मोहे॥मैना मातु की ह्वै दुलारी।बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।सागर मध्य कमल हैं जैसे॥कार्तिक श्याम और गणराऊ।या छवि को कहि जात न काऊ॥देवन जबहीं जाय पुकारा।तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥किया उपद्रव तारक भारी।देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥तुरत षडानन आप पठायउ।लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥आप जलंधर असुर संहारा।सुयश तुम्हार विदित संसारा॥त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥किया तपहिं भागीरथ भारी।पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।सेवक स्तुति करत सदाहीं॥वेद नाम महिमा तव गाई।अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।जरे सुरासुर भये विहाला॥कीन्ह दया तहँ करी सहाई।नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥जय जय जय अनंत अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।यहि अवसर मोहि आन उबारो॥लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट से मोहि आन उबारो॥मातु पिता भ्राता सब कोई।संकट में पूछत नहिं कोई॥स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु अब संकट भारी॥धन निर्धन को देत सदाहीं।जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥शंकर हो संकट के नाशन।मंगल कारण विघ्न विनाशन॥योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।नारद शारद शीश नवावैं॥नमो नमो जय नमो शिवाय।सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥जो यह पाठ करे मन लाई।ता पार होत है शम्भु सहाई॥ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।पाठ करे सो पावन हारी॥पुत्र हीन कर इच्छा कोई।निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे ॥त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।तन नहीं ताके रहे कलेशा॥धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥जन्म जन्म के पाप नसावे।अन्तवास शिवपुर में पावे॥कहे अयोध्या आस तुम्हारी।जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥॥दोहा॥नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥भगवान शिव की आरतीजय शिव ओंकारा, ओम जय शिव ओंकारा।ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ओम जय शिव ओंकारा…एकानन चतुरानन पंचानन राजे।हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ओम जय शिव ओंकारा…दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ओम जय शिव ओंकारा…अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारीत्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ओम जय शिव ओंकारा…श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे।सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ओम जय शिव ओंकारा…कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी।सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ओम जय शिव ओंकारा…ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका॥ओम जय शिव ओंकारा…लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ओम जय शिव ओंकारा…पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ओम जय शिव ओंकारा…जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ओम जय शिव ओंकारा…काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी।नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ओम जय शिव ओंकारा…त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे॥ओम जय शिव ओंकारा…