विधानसभा चुनाव के बाद यूपी निकाय चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को भारी जीत मिली है. पार्टी ने 16 में से 14 निगमों पर कब्जा जमाकर एक बार फिर भगवा परचम लहरा दिया है. हालांकि, विधानसभा चुनाव के मुकाबले उसके वोट प्रतिशत में कमी आई है. वहीं, सबसे खराब प्रदर्शन रहने के बावजूद कांग्रेस को अपने दम पर चुनाव लड़ने से लाभ पहुंचा है.
इसी साल हुए विधानसभा चुनाव से निकाय चुनाव की तुलना की जाए तो बीजेपी, बीएसपी और सपा तीनों मुख्य दलों के वोट प्रतिशत में कमी आई है. जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव के मुकाबले बढ़ा है.
विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी और अखिलेश साथ लड़े थे. यूपी के लड़कों की इस जोड़ी को कुल 28 प्रतिशत वोट मिले थे. जिसमें कांग्रेस के हिस्से महज 6.2 फीसदी वोट आए थे. जबकि नगर निकाय चुनाव की बात की जाए तो कांग्रेस का ग्राफ ऊंचा गया और उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 10 फीसदी हो गया.
यानी विधानसभा चुनाव में राहुल और अखिलेश का साथ जनता को जितना भी पसंद आया, उसमें बड़ा फायदा सपा के हिस्से गया. जबकि अब जब कांग्रेस अपने दम पर निकाय चुनाव में गई तो उसकी हालत में सुधार आया. ऐसे में सवाल ये भी क्या राहुल गांधी का यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के साथ गठबंधन करना कांग्रेस के लिए नुकसानदायक रहा?
वोट बढ़ा, हालत खराब
भले ही कांग्रेस का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव की तुलना में सुधरा हो, लेकिन निकाय चुनाव के फाइनल नतीजे पार्टी के लिए बहुत निराशाजनक रहे हैं. पार्टी ने निगम पार्षद चुनाव के लिए 106 प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से महज 8 ही जीत पाए हैं. इससे भी चौंकाने वाला आंकड़ा ये है कि कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले 90 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई.
तीनों मुख्य पार्टियों के वोट घटे
विधानसभा चुनाव की तुलना में बीजेपी, बीएसपी और सपा के वोट प्रतिशत में गिरावट आई है. सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को हुआ है. उसके वोट प्रतिशत में 9 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि बीएसपी के वोट में 4 प्रतिशत, सपा के वोट में 1.4 फीसदी की गिरावट आई है.