नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को अपना राजनीतिक वारिस किया घोषित, उन्होंने कहा…

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जल्द ही भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की मुहिम पर निकलेंगे। उनका दावा है कि इस बार थर्ड नहीं मेन फ्रंट बनेगा। यानी कांग्रेस समेत तमाम बड़ी पार्टियों को इस फ्रंट में शामिल किया जाएगा। उन्होंने महागठबंधन विधायक दल की बैठक में मंगलवार को तेजस्वी यादव को बिहार में अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। सात दलों का महागठबंधन 2025 का विधानसभा चुनाव उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ेगा। नीतीश कुमार ने कांग्रेस विधायकों के माध्यम से कांग्रेस आलाकमान को साफ संदेश भी दिया है कि वह न तो पीएम बनना चाहते हैं और न सीएम बने रहना। उनका मकसद केन्द्र की सत्ता से भाजपा को उखाड़ फेंकना है। तेजस्वी यादव ने भी घोषणा कर दी है कि महागठबंधन 2024 का लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ेगा। शनिवार और रविवार को पटना में जदयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक और खुला अधिवेशन था। इसमें पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि छह माह के लिए नीतीश कुमार को दिल्ली भेज दीजिए, भाजपा की सरकार गिर जाएगी। नीतीश कुमार को न तो ईडी का डर है और न सीबीआई का। इन बड़े आयोजनों में कही गई बातों को एक कड़ी में जोड़ने से इसके निहितार्थ बहुत साफ हैं। यानी नीतीश कुमार अब भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की मुहिम के लिए ज्यादा समय देंगे। इसके लिए वे आने-वाले दिनों में दूसरे राज्यों का दौरा करेंगे। इससे यह कयास भी लगाया जा रहा है कि भले ही वह 2025 तक मुख्यमंत्री बने रहें, लेकिन ज्यादा समय वह अपनी मुहिम को देंगे। इस दौरान तेजस्वी बिहार की जिम्मेदारी संभालेंगे। नीतीश कुमार ने नालंदा में कहा भी था कि मैंने बहुत काम किया, आगे तेजस्वी कराते रहेंगे। वह कांग्रेस के द्वंद को दूर करने के लिए साफ संदेश दे रहे हैं कि उनका मकसद पीएम प्रत्याशी बनना नहीं है। वह पहले कह चुके हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की बात बेमानी है। राहुल-सोनिया से नीतीश की फिर होगी मुलाकात? चार दिनों के ताजा घटनाक्रमों से कयासों का दौर भी शुरू हो गया है। जानकारों का कहना है कि लालू प्रसाद के सिंगापुर से लौटने के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी से दूसरे दौर की बातचीत होगी। नीतीश कुमार यूपीए के संयोजक बनाए जा सकते हैं। इस नाते विपक्षी एकता की मुहिम को आगे बढ़ाने में उन्हें ताकत मिलेगी। नीतीश का दूसरे राज्यों पर फोकस इधर, जदयू ने पार्टी नेताओं को दूसरे राज्यों की जिम्मेदारी सौंपनी शुरू कर दी है। दो मंत्रियों को उत्तरप्रदेश और झारखंड का प्रभार सौंपा गया है। जल्द ही बाकी राज्यों की जिम्मेदारी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का सौंपी जाएगी। नीतीश कुमार की मुहिम का पहला पड़ाव उत्तर-पूर्व के राज्य होंगे। अगले साल के शुरू में पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। इन राज्यों में जदयू को सीटें मिलती भी रही हैं। अब इन राज्यों में भाजपा के खिलाफ मोर्चेबंदी का मकसद जदयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाना भी है। नागालैंड में पिछले चुनाव में जदयू को 5. 6 फीसदी वोट मिले थे। अगर इस बार 6 फीसदी भी मिल जाए तो जदयू राष्ट्रीय पार्टी बन जाएगी। आसान नहीं नीतीश की राह नीतीश कुमार के अभियान की राह आसान भी नहीं है। एनडीए से अलग होने के बाद 6-7 और 25 सितंबर को नीतीश कुमार दिल्ली में राहुल गांधी, सीताराम येचुरी, डी राजा, अरविंद केजरीवाल, एचडी कुमार स्वामी, ओमप्रकाश चौटाला, अखिलेश यादव और शरद पवार से मिले थे। दूसरे दौर में लालू प्रसाद के साथ सोनिया गांधी से मुलाकात की। इसके बाद भी कांग्रेस ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। 2024 को लेकर नीतीश कुमार का ये है प्लान  वैसे कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने समय- समय पर नीतीश कुमार के अभियान को सराहा है। पीएम उम्मीदवार को लेकर उनमें द्वंद्व रहा है। नीतीश कुमार ने मंगलवार को इसी द्वंद्व को दूर करने के लिए साफ संदेश दे दिया कि उनका मकसद प्रधानमंत्री बनना नहीं है। ताकि कांग्रेस इस अभियान में शामिल हो। दूसरी तरफ नवीन पटनायक, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस के साथ फ्रंट बनाने के लिए राजी करना भी है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने तो नीतीश कुमार के इस बयान के बाद ही इस अभियान से किनारा कर लिया कि कांग्रेस के बिना विपक्ष की एकजुटता की बात बेमानी है। जानकार बताते हैं कि जिस राज्य में जो दल मजबूत स्थिति में है, उसे उस राज्य में बाकी दल साथ दें, के फार्मूले पर सबको एक छतरी के नीचे में लाने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी। हालांकि इतना तय है कि बिहार में महागठबंधन की तरह अन्य राज्यों में भाजपा विरोधी दलों का फ्रंट बनता है तो एनडीए के लिए 2024 का चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण बन जाएगा। खासकर बिहार, यूपी, झारखंड में तो इसका सीधा असर पड़ेगा। बाकी नवीन पटनायक, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के फैसलों से भी विपक्ष की एकजुटता की पहल की कामयाबी निर्भर करेगी।
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