बीजेपी आज सिर्फ जीत की भाषा समझती है. रणनीति, माहौल, और टीम किसी भी सापेक्ष में बीजेपी विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं छोड़ना चाहती. आला कमान से लेकर जमीनी कार्यकर्त्ता तक को रणनीति का पूरा ज्ञान होता है. एक ही स्वर में ऊपर से नीचे तक के लोग बात करते है. इसके कई उदाहरण है. जैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावा किया था की वह गुजरात विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवारों को खड़ा करेंगे. यद्यपि जनता दल (यू) का नीतीश कुमार से छोटू भाई वसावा के अलग होने के बाद कोई वोट बैंक नहीं था. मगर नीतीश अपने उम्मीदवारों को खड़ा कर निष्पक्ष रहना चाहते हैं.
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नीतीश को संदेश भेजे गए कि वह उम्मीदवार को मैदान में न उतारें क्योंकि भाजपा के लिए प्रत्येक वोट महत्वपूर्ण है, मगर वह अपने फैसले पर अड़े रहे. इस पर बीजेपी आला कमान खुद कुछ नहीं बोलै वरन उन्होंने इसके लिए सबसे उपयुक्त सिपाहियों को चुना. यही से रणनीतिकारो का महत्त्व समझ आता है. कुछ ही घंटों के भीतर झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने उनकी मध्य निषेध नीति पर प्रहार किया और आरोप लगाया कि शराब की बोतलें घरों में सप्लाई की जाती हैं तथा दलाल बिहार में मालामाल हो रहे हैं. यहीं बस नहीं, केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने नीतीश कुमार पर कृषि मोर्चे में उनकी कारगुजारी को लेकर हमला बोल दिया. राधामोहन ने कहा कि बिहार कृषि में सबसे निचले राज्यों की श्रेणी में है.
इस पर नीतीश कुमार ने अपना रवैया बदल लिया जिससे जद (यू) के उम्मीदवार देखते ही रह गए. चौतरफा प्रहारों से नीतीश को ये समझा दिया गया की गठबंधन से बाहर जाना उनके लिए मुमकिन भी नहीं है और यदि वे ऐसा करते है तो आगे उसके परिणाम क्या होंगे.