पिछली सरकार के दौरान, भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें मजबूत कर ली थीं। लाखों-करोड़ रुपये के घोटालों से देश की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही थी, देश के दुश्मन नकली करेंसी से अर्थव्यवस्था को चौपट कर रहे थे। देश की कुल करेंसी में एक हजार और पांच सौ रुपये के बड़े नोटों की हिस्सेदारी 86 प्रतिशत हो गई थी, जिन्हें भ्रष्टाचार में आसानी से प्रयोग किया जा रहा था। निराशा के घोर अंधकार के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आशा की किरण बनकर आए और इसके साथ ही राष्ट्रहित में मजबूत फैसले लेने का दौर शुरू हो गया।
आज तक के राजनीतिक इतिहास में हर सियासी दल ने महत्वपूर्ण फैसले लेने से पहले अपने नफे-नुकसान का आकलन किया। लेकिन आठ नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राजनीतिक नफे-नुकसान की चिंता किए बगैर देशहित में नोटबंदी का साहसिक फैसला लिया। प्रधानमंत्री के इस आह्वान पर पूरा देश उनके साथ रहा। तकलीफें भी सहीं, लेकिन ईमानदारी के साथ देश की जनता कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही।
पिछले एक साल में नोटबंदी से सबसे ज्याद दर्द किसी को हुआ, तो वह है विपक्ष, खासतौर से कांग्रेस पार्टी। ऐसा इसलिए कि उनके राज में भ्रष्टाचारियों को पनाह मिली, जिसे मौका मिला, उसने अपनी जेबें भरी। नोटबंदी के एक साल बाद अब स्थितियां सामान्य हो गई हैं। 99 फीसदी सफेद धन बैंकिंग सिस्टम में वापस आ चुका है। देश की ईमानदार जनता खुश है, लेकिन कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल आज भी नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं।
मोदी सरकार के जिन साहसिक फैसलों पर विपक्ष जनता को गुमराह करता रहा है, उन फैसलों पर वर्ल्ड बैंक ने हाल में ही अपनी मुहर लगाई है। यह पिछले तीन साल के दौरान हुए आर्थिक सुधारों का ही नतीजा था कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की सूची में भारत 30 स्थान की छलांग लगाकर 100वें स्थान पर पहुंचा है। यह पारदर्शी टैक्स नीति और काले धन पर सख्ती का ही असर है कि करदाताओं की संख्या वाली सूची में भारत 53 पायदान ऊपर चढ़ा है।कुल मिलाकर मोदी सरकार की दूरदर्शी नीतियों से देश को फायदा हो रहा है और विश्वपटल पर भारत की ताकत का डंका बज रहा है।
किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिल रहा है, खाद पर सब्सिडी मिल रही है। देश की सीमाएं सुरक्षित हैं। लेकिन विपक्ष अपनी आंखों पर विरोध की काली पट्टी बांधकर बैठा है। उसे न कुछ अच्छा दिखता है, न कुछ अच्छा सूझता है। यही वजह कि जनता हर बार चुनावों में विपक्षी पार्टियों के मंसूबों पर पानी फेरकर उन्हें राजनीतिक अंधकार में धकेल देती है।