कालका के रास्ते सोलन होते हुए शिमला तक के सफर में हमें हर जगह यही नजारा दिखा। जिसे जानकारी न हो वह पहली नजर में शायद ही अंदाजा लगा पाए कि राज्य में चंद दिनों बाद विधानसभा चुनावों के लिए मतदान होना है। घरों और स्कूल कालेजों की दीवारें बिल्कुल चकाचक थीं, न किसी वाहन पर प्रत्याशी का बैनर पोस्टर नजर आया, न दुकानों पर प्रत्याशियों के बैनर लटकते दिखे।
हां, कुछ प्रचार वाहनों पर जरूर प्रत्याशियों के बैनर-पोस्टर लगे हुए थे। यही हाल प्रत्याशियों के कार्यालयों का भी दिखा। राज्य के सीमांतर कस्बे परवाणू में जब हमने भाजपा प्रत्याशी राजीव सैजल के कार्यालय का जायजा लिया तो वहां बामुकिश्ल तीन-चार आदमी नजर आए।
दोनों कार्यालयों पर पार्टी के दो-चार बैनर और चंद पोस्टर ही नजर आए। हमारे साथ चल रहे टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि यहां हर चुनावों का यही हाल रहता है, पिछले 22 साल से वह यहां टैक्सी चला रहे हैं उन्होंने कभी नहीं देखा जब यहां चुनावों को लेकर कोई शोर शराबा नजर आया हो।
प्रत्याशियों के साथ की भीड़ भी नदारद
दोपहर तीन बजे के करीब हमारी गाड़ी शिमला ग्रामीण क्षेत्र में पहुंची जहां से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट को राज्य की हॉट सीटों में गिना जा रहा है क्योंकि उनके सामने शिक्षक से राजनेता बने डा. प्रमोद शर्मा भाजपा से ताल ठोंक रहे हैं। शर्मा कभी विक्रमादित्य के पिता वीरभद्र के सहयोगी और चुनाव प्रबंधक रह चुके हैं लेकिन अब मुकाबला उन्हीं से है।
यहां भी चुनावों का शांत शांत नजारा दिखा। स्थानीय निवासी शिवा ठाकुर बताते हैं कि “यहां सभी चुनाव हमेशा से ऐसे ही होते रहे हैं। हां निकाय चुनावों में थोड़ी सरगर्मी ज्यादा रहती है लेकिन शोर शराबा तब भी ज्यादा नहीं होता।” चुनावों में हिंसा के सवाल पर वो कहते हैं कि “पहाड़ अभी इससे बचे हुए हैं”।
मतदान के दौरान कभी कभी छिटपुट हिंसा की खबरें आती हैं लेकिन वो इतनी बड़ी नहीं होती जो चिंता पैदा कर सकें। मैंने उनसे बताया कि हमारे यहां यूपी और दिल्ली के इलाकों में विधानसभा चुनावों में तो प्रत्याशी कम से कम दस-बीस गाड़ियों के काफिले के साथ वोट मांगने निकलते हैं। इस पर शिवा का जवाब था “साहब इतनी गाड़ियां तो हमारे यहां सीएम भी लेकर नहीं चलते”।
ऐसे में एक बात साफ नजर आती है कि हिमाचल में होने वाले विधानसभा इलेक्शन चुनाव आयोग के आदर्शों और मंशा पर पूरी तरह खरे उतरते हैं। बिना ज्यादा खर्चे वाले इन चुनावों में शायद ही प्रत्याशी चुनाव आयोग द्वारा तय की गई खर्च की सीमा पार कर पाते हों।