पाकिस्तान स्थित बलूचिस्तान प्रांत में हिंगोल नदी के किनारे स्थित है, हिंगलाज भवानी शक्तिपीठ मंदिर। बता दें कि प्राचीन काल से इसे नानी मंदिर, हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी के नाम से जाना जाता रहा है।
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इस मंदिर की मान्यता के चलते बलूचिस्तान की दहला देने वाली गर्मी में, जय माता दी की जयकार लगाते श्रद्धालु, धीरे धीरे मंथर गति से चन्द्रगुप्त के नाम पर बने ज्वालामुखी की चढ़ाई पर नंगे पाँव जाते दिखाई देते हैं। आने वाले श्रधालुओं की उखड़ी हुई साँसें और बदन से बहता हुआ पसीना, लेकिन उत्साह, श्रद्धा और भक्ति में कोई कमी नहीं।
सौन्दर्य के प्रतीक हिंगोल के 300 फुट ऊंचे ज्वालामुखी का यह शिखर यदि भारत में होता तो शायद लाखों तीर्थ यात्री वहां पहुंचते, किन्तु यहाँ पाकिस्तान में हजारों ही सही, पर पहुंचते जरुर हैं। यहाँ के ज्वालामुखी के मुहाने पर पहुंचते ही तीर्थ यात्री अपने साथ लाया नारियल ज्वालामुखी के विशाल गव्हर में सादर चढ़ा देते हैं। वहां पहुंचे श्रद्धालु हाथ जोड़कर देवताओं का स्मरण कर उन्हें प्रणाम निवेदन करते है, अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं।
इस चंद्रगुप्त के मुहाने पर अदा की जाने वाली यह रस्म, इस पवित्र हिन्दू तीर्थ माता हिंगलाज देवी यात्रा का प्रथम चरण है। उसके बाद वे वहां की पवित्र भभूत अपने चेहरे पर लगाए श्रद्धालु वापस नीचे उतरते हैं और वहां से 35 किमी दूर किर्थार पहाड़ों की तलहटी में स्थित मुख्य हिंगलाज देवी मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
पाकिस्तान के मुख्य शहर कराची से लगभग 250 किलोमीटर पश्चिम में स्थित हिंगोल में प्रति वर्ष चैत्र मास की नवरात्रि में अधिकाँश तीर्थ यात्रियों का आगमन होता है। मगर उनमें से अधिकाँश थरपारकर से ही होते हैं। इसका कारण यह है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या थरपारकर में ही सबसे ज्यादा है। यहाँ लगभग तीन लाख हिन्दू रहते हैं।
हिंगलाज माता मंदिर जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा जरूरी है। अधिकतर श्रद्धालु मीठी और उम्रकोट से 550 किलोमीटर की यात्रा पैदल 22 दिनों में पूर्ण कर अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं। कुछ लोग कारों और अन्य वाहनों से भी वहां जाते हैं। माना जाता है कि कराची और ग्वादर के बीच 2007 में निर्मित हुए मकरान तटीय राजमार्ग ने इस आवागमन को काफी हद तक सुगम कर दिया है।
विगत 31 वर्षों से हिंगलाज भवानी शक्तिपीठ कल्याण ट्रस्ट द्वारा यहाँ समारोह का आयोजन किया जा रहा है। ट्रस्ट के महासचिव वीरसी मलके देवानी बताते है कि दुनिया भर से तीर्थयात्री यहाँ आना चाहते हैं, मगर स्थानीय समस्याओं के कारण वे यहाँ आने से कतराते हैं।
जिन मुसलमानों को तीर्थ यात्रा के आयोजक नही जानते उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया जाता। यह व्यवस्था केवल इस बार ही की गई है। विगत वर्ष तक तो मुसलमान भी इस यात्रा में सहभागी होते थे। वे इसे नानी का हज कहते रहे हैं।
मोटे तौर पर माना जा रहा है कि इस वर्ष लगभग ढाई लाख श्रद्धालु मंदिर के दर्शनों को पहुंचे। सड़क के किनारे लगे स्टालों में नारियल, अगरबत्ती, देवी-देवताओं की मूर्तियां, गुलाब और गेंदा के फूल, भजन की किताबें, सूखे फल और यात्रियों के लिए अन्य खाद्य वस्तुओं का विक्रय होता है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में भगवान् शिव की पत्नी सती ने अपने पति शिव का अपमान देखकर स्वयं को योगाग्नि में जला दिया था, उसके बाद क्रोधित शिव गणों ने दक्ष यज्ञ का विध्वंस किया। दुखी शिव जब सती के शरीर को लेकर चले तब भगवान् विष्णु ने उन्हें शांत करने के लिए उस शरीर के 51 टुकडे किए।
जिन जिन स्थानों पर शरीर के अंग गिरे वे शक्तिपीठ कहलाये। मान्यता के अनुसार सती का सिर हिंगोल नदी के किनारे हिंगलाज में गिरा, इसलिए इस स्थान का विशेष महत्व है। हिंगलाज देवी को पांडवों की कुलदेवी के रूप में भी जाना जाता है। पाकिस्तान में इसके अलावा भी कई हिन्दुओं के प्राचीन मंदिर स्थित हैं जिनमे से कईयों का पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व भी है। लेकिन बड़े अफसोस की बात है की यह सभी मंदिर पाकिस्तान सरकार की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।