अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने की कवायद में लगे पीएम मोदी की कोशिश होगी की भारत को एससीओ का पूर्णकालिक सदस्य देश बनाया जा सके, जो फिलहाल इस संगठन में निरीक्षक की हैसियत से शामिल है। एससीओ की सदस्यता से भारत चीन के साथ अपने संबंधों को तो विस्तार दे ही सकता है, एशिया में भी अपनी भूमिका का विस्तार कर सकता है।
हालांकि चीन ने आश्वस्त कर रखा है कि इस बार भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को एक साथ एससीओ का सदस्य बनाया जाएगा। ऐसे में जानना जरूरी है कि एससीओ यानि शंघाई सहयोग कार्पोरेशन है क्या और भारत में इसके आने के क्या मायने होंगे।
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क्या है शंघाई सहयोग संगठन?
अप्रैल 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान आपस में एक-दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निबटने के लिए सहयोग करने पर राजी हुए थे। उस समय इस संगठन को शंघाई फाइव कहा गया था। इसके बाद जून 2001 में चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देशों कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन शुरू किया और नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निबटने और व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया। शंघाई फाइव के साथ उजबेकिस्तान के आने के बाद इस समूह को शंघाई सहयोग संगठन कहा गया।
शंघाई सहयोग संगठन के छह सदस्य देशों का भूभाग यूरेशिया का 60 प्रतिशत के बराबर है जहां दुनिया के एक चौथाई लोग रहते हैं। 2005 में कजाकिस्तान के अस्ताना में हुए सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने भी पहली बार हिस्सा लिया। इस सम्मेलन के स्वागत भाषण में कजाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेफ ने कहा था, इस वार्ता में शामिल देशों के नेता मानवता की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
एससीओ ने संयुक्त राष्ट्र से भी संबंध स्थापित किए हैं और यह महासभा में पर्यवेक्षक है। एससीओ ने यूरोपीय संघ, आसियान, कॉमनवेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी संबंध स्थापित किए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी हाल ही में फेसबुक पर लिखा था कि भारत जल्द ही दुनिया की 40 फीसदी आबादी और कुल 20 फीसदी जीडीपी वाले एससीओ का सदस्य बन जाएगा।