किसी को बुखार था, किसी को सिर दर्द. किसी को खांसी तो किसी को सांस लेने में तकलीफ. सब बच्चे थे, उन्हें तो ये तक पता नहीं था कि सांसें जिंदगी के लिए जरूरी हैं और कई बार सांसें उधार में भी मिलती हैं. सब सांसों के उतार-चढ़ाव से अनजान थे. बच्चों को छोड़िए उनके साथ आए बड़ों तक को नहीं पता था कि जहां वो जिंदगी की आस में अपने बच्चों को लाए हैं वो तो खुद उधार की सांसों पर जी रहा है. मौत के बाद हर सोगवार घर की अलग-अलग कहानी है, बस दर्द एक है.

पंप के सहारे दी मैनुअली ऑक्सीजन
पांचवीं में पढ़नेवाली वंदना को अभी महज़ दो दिन पहले ही तो मामूली सा बुखार हुआ था. लेकिन ये बुखार मां से उसकी लाडली को हमेशा-हमेशा के लिए छीन लेगा, ये भला किसने सोचा था. डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल में ऑक्सीजन ख़त्म होने की बात कहते हुए एक बैलून जैसी चीज़ देकर उसे लगातार पंप कर वंदना को मैनुअली ऑक्सीजन देते रहने को कहा. समय-समय पर डॉक्टरों के कहने पर कभी ख़ून तो कभी दवाओं के लिए घरवालों की भागदौड़ चलती रही. लेकिन शुक्रवार की सुबह सूरज की पहली रौशनी के साथ ही वंदना सिर्फ़ ऑक्सीजन की कमी की वजह से सबको छोड़ कर इस दुनिया से दूर चली गई.
परिजनों को डॉक्टरों ने डांट-डपट कर भगाया
गोरखपुर के पास महाराजगंज का एक परिवार भी बीआरडी मेडिकल कॉलेज की लापरवाही का शिकार हुआ. घर की 7 साल की मासूम बेटी को सुबह अचानक झटके लगने लगे. लोग अस्पताल लेकर गए लेकिन वहां ऑक्सीजन की कमी से उसकी सांस थम गई. मौत का अहसास तो घरवालों को भी फ़ौरन हो गया था लेकिन हंगामे के डर से डॉक्टर घरवालों को झूठा दिलासा देते रहे. पास ही कुशीनगर के गांव महुआडीह की एक तीन साल की बच्ची भी ऑक्सीजन की कमी से मारी गई. सुनील की बेटी शालू को बुखार के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया था. जहां पहले तो डॉक्टरों ने गोल मोल बातें कीं और फिर मौत की ख़बर दे दी. यहां तक कि पूछने पर डॉक्टरों ने उन्हें डांट-डपट कर भगा दिया.
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