कभी अदबी महफ़िलों और नशिस्तों के लिए मशहूर रहे लखनऊ में इन दिनों ‘फेस्टिवल्स’ की बहार आई हुई है। फेस्टिवल्स भी ऐसे कि जो कला-संस्कृति के सन्दर्भ में लखनऊ की एक नई तस्वीर पेश करते हैं, लखनऊ की सदियों पुरानी तहज़ीब और अदबी दुनिया में आ रहे इंक़लाब की गिरह खोलते हैं।अभी-अभी: चुनाव में जीत पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने जनता को दी बधाई!
लखनऊ लिटरेचर फेस्टिवल, लखनऊ लिटरेरी फेस्टिवल, लखनऊ मैंगो फेस्टिवल, सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल, लखनऊ कथक फेस्टिवल, वाजिद अली शाह फेस्टिवल, सरकारी लखनऊ महोत्सव, अहिंसा फेस्टिवल जैसे बेशुमार फेस्टिवल पिछले कछ सालों से लखनऊ में हो रहे हैं। इन फेस्टिवल्स में सर-ए- फेहरिस्त है रेपर्टवा फेस्टिवल,लखनऊ जिसके आठवे संस्करण का गवाह बनने को तैयार है।
11 से 17 दिसंबर तक होने वाले सात दिनों के इसके आठवें संस्करण में लाइव म्यूज़िक और स्टैण्ड-अप कॉमेडी का फेस्टिवल भी शामिल रहेगा। इस बार के फेस्टिवल में नाटक, संगीत और स्टैण्ड-अप कॉमेडी के कल 28 टिकट आधारित प्रस्तुतियां होंगी, इनमें 150 से ज़्यादा कलाकार शामिल रहेगें, जिनमें से बेशतर लखनऊ में पहली बार परफॉर्म करेंगे। इसके अलावा रेपर्टवार की तरफ़ से 200 से ज़्यादा लोग आयोजन-दल का हिस्सा हैं, जो एक हफ़्ते तक कुल 22000 लोगों को टिकट के साथ इस फेस्टिवल तक लाने की कोशिश करेंगे।
यहां ज़्यादातर स्थानीय रंगकर्मियों द्वारा तैयार किए गए नाटक होते थे वो भी बिना टिकट अथवा मामूली टिकट पर। महंगे टिकट और असामान्य विषयों पर होने वाले नाटकों तक लोगों को खींचना एक असंभव बात समझी जाती थी। मगर रेपर्टवा ने साल-दर-साल कोशिश करते हुए इस शहर में एक ऐसा दर्शक वर्ग तैयार किया है जो न सिर्फ टिकट ख़रीद कर नाटक देखता है बल्कि पारंपरिक विषयों से अलग नाटक देखने के लिए भी तैयार रहता है।
इस बार टिकट की क़ीमत 300 से 500 तक है, जो कि लखनऊ के लिहाज़ से ज़्यादा नहीं बल्कि बहुत ज़्यादा है, इसके बावजूद आयोजकों को उम्मीद है कि वो दर्शक जुटाने में कामयाब होंगे।
अपने आठवे संस्करण में रेपर्टवा जहां बर्फ, लॉरेट्टा, चुहल, द जेन्टलमेन्स क्लब और धूम्रपान जैसे बहुचर्चित नाटक लेकर आ रहा है वहीं इस बार पहली बार इसमें वरून ठाकुर, रजनीश कपूर, अभिषेक उपमन्यु, कुनाल कामरा, गौरव कपूर, सुमित आनंद, वरून ग्रोवर, संजय रजौरा जैसे चर्चित स्टैण्ड-अप कॉमेडियन्स भी आ रहे हैं।
दशकों तक राजू श्रीवास्तव और केपी सक्सेना की चुहल पर ठहाके लगाता रहा ये शहर अब डिजिटल एज के विदूषकों का स्वागत करने को भी तैयार है। इसके साथ ही रेपर्टवा में म्यूज़िक फेस्टिवल भी है जिसमें लखनऊ के संगीत के रिवायती शौक़ जो आम-तौर पर बॉलीवुड, गज़ल या ठुमरी तक ही महदूद है से अलग हटकर मॉडर्न बैंड म्यूज़िक से लखनऊ को रू-ब- रू करवाता है. व्हेन चाय मेट टोस्ट, कबीर कैफ़े, परवाज़, नमित दास और अनुराग शंकर, अंकुर एंड द ग़लत फैमिली और इंडियन ओशेन जैसे बैण्ड जो कि लखनऊ के रिवायती मिज़ाज से अलग मौसीक़ी रखते हैं, इस फेस्टवल में एक मंच पर प्रस्तुति देंगे।
कुल मिलाकर रेपर्टवा लखनऊ में एक नई राह पर चल रहा है, जिसकी अपनी दुशवारियां, आसानियां, मंज़िलें और हासिल हैं। एक वो लखनऊ है जो बड़े अदब-अख़लाक़ से अपने नॉस्टेल्जिया का उत्सव मनाता है। एक ये लखनऊ है जिसके मिज़ाज में एक मगरूर बांकपन है जो पुरानी राहों पर चलने से इंकार करता है। इन दोनो के बीच लखनऊ का तहज़ीबी सफ़र सिमटा हुआ है।