नगर निगम चुनाव में मिली जीत ने दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का कद बढ़ा दिया है। अब वह सिर्फ पूर्वांचली नहीं, बल्कि पूरी दिल्ली के नेता के तौर पर उभरे हैं। निगम चुनाव में भाजपा ने उन्हें चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था, जिसका पार्टी को लाभ मिला। इससे इस बात की संभावना बढ़ गई है कि भाजपा अगले विधानसभा चुनाव में भी इन्हें अपना चेहरा बनाएगी।मनोज तिवारी की साख भी थी दांव पर
निगम चुनाव में भाजपा के साथ ही मनोज तिवारी की साख भी दांव पर लगी हुई थी, क्योंकि भाजपा नेतृत्व ने कई वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज कर इन्हें दिल्ली की कमान सौंपी थी। इससे कई नेता नाराज हैैं और अभी भी उनकी नजर दिल्ली की कुर्सी पर लगी हुई है।
वहीं, पार्षदबंदी की वजह से भीतरघात का खतरा भी था। इस स्थिति में निगम चुनाव में पराजय से उनके विरोधियों को एक मुद्दा मिल जाता। इस बहाने वे तिवारी को हटाकर दिल्ली की कमान अपने हाथ में लेने की कोशिश करते लेकिन अब स्थिति बदल गई है। विरोधी पार्टियों के साथ ही पार्टी के अंदर के विरोधी भी पस्त हो गए हैं।
इसलिए भाजपा ने दिल्ली में बनाया अपना चेहरा
दरअसल दिल्ली में लगभग 35 फीसद मतदाता बिहार और उत्तर प्रदेश से संबंधित है। परंपरागत रूप से ये कांग्रेस के समर्थक माने जाते रहे हैं, जो कि आम आदमी पार्टी (आप) के उदय के बाद उसके साथ चले गए। वहीं, इनका समर्थन हासिल करना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती थी, इसलिए भाजपा ने इन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए तिवारी को दिल्ली में अपना चेहरा बनाया। चुनाव प्रचार की कमान मनोज तिवारी के हाथ में थी। उन्होंने भी पार्टी नेतृत्व के विश्वास पर खरा उतरने के लिए लगभग पिछले पांच महीने से दिल्ली की सड़कों पर पसीना बहाया और झुग्गी बस्तियों में प्रवास कर गरीबों को अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश की, जिसमें वे सफल रहे।
भाजपा ने मनोज तिवारी को 2014 लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल का चेहरा बनाकर उत्तर पूर्वी संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतारा था। चुनाव जीतकर वे संसद पहुंचे और उसके बाद से ही दिल्ली की राजनीति में उनकी दखल बढ़ने लगी। पिछले वर्ष नवंबर में उन्हें दिल्ली प्रदेश भाजपा कमान सौंपी गई। उनकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए पार्टी ने उन्हें स्टार प्रचारक बनाने के साथ ही दिल्ली में अपना चेहरा बनाकर निगम चुनाव लड़ा।
दिल्ली के सर्वमान्य नेता के रूप में उभरे
मनोज तिवारी पूरबिया वोटरों को लुभाने के साथ ही भाजपा के परंपरागत वोटरों को भी एकजुट रखने में सफल रहे, जिससे निगम चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई। इससे अब वे सिर्फ पूर्वांचल का नेता न रहकर दिल्ली के सर्वमान्य नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं।