उरी में सेना के मुख्यालय पर हुए आतंकी हमले के दस दिन बाद भारतीय सेना ने उसका बदला ले लिया है। एलओसी को पार सात आतंकी कैंपों को तबाह कर दिया गया। इतना ही नहीं इस सर्जिकल स्ट्राइक में 38 आतंकियों को भी मौत की नींद सुलाया गया। इस खतरनाक ऑपरेशन को पूरा किया था भारतीय सेना की उत्तरी कमान की चौथी व नौवीं बटालियन की स्पेशल फोर्स पैरा कमांडो ने। इन्हीं पैरा कमांडो की टीम ने म्यांमार में घुसकर वहां के आतंकी कैंपों को तबाह किया था।
इस तरह के ऑपरेशन के लिए हमारे पैरा कमांडो मुख्य बिन्दूओं पर काम करते हैं। वो चार बिन्दु हैं लक्ष्य निर्धारण, टाइम, लीडरशिप और सबसे अहम जो हमें हर परिस्थिति में लड़ने लायक बनाती है, वो है हिम्मत।
लक्ष्य निर्धारण: सबसे जरूरी है कि जहां भी ऑपरेशन करना हो, सबसे पहले वहां की सटीक जानकारी ले लें। सिर्फ टीम लीडर ही नहीं पूरी टीम को टारगेट के चप्पे-चप्पे से वाकिफ कराया जाता है। समय होने पर 24 से 48 घंटे तक टारगेट की निगरानी की जाती है।
समय: इस तरह के ऑपरेशन में समय बहुत महत्व रखता है। टीम में शामिल हर जवान को समय के हिसाब से मिले हुए काम को अंजाम देना होता है। अगर कोई एक जवान घायल हो जाता है या मर जाता है तो उसका काम उसी समय पर दूसरा जवान करेगा। क्योंकि किसी एक जवान की वजह से अगर समय गड़बड़ाता है तो पूरे ऑपरेशन के खतरे में पड़ने की आशंका खड़ी हो जाती है। जिससे टीम भी खतरे में आ जाती है। खास बात यह है कि ऐसे ऑपरेशन 30 मिनट से लेकर साढ़े तीन घंटे तक के होते हैं। निर्धारित समय में ही अपने देश की सीमा में भी लौटना होता है।
लीडरशिप: लीडर पर ही पूरा ऑपरेशन और ऑपरेशन में लगे जवानों की जिम्मेदारी होती है। टीम लीडर को समय रहते, सीमित संसाधन और अपने जवानों की हिफाजत करते हुए ऑपरेशन को अंजाम देना होता है।
हिम्मत: हर तरह के हथियार, हैलीकॉप्टर, योजनाएं और दूसरी चीजें रखी रह जाती हैं जब कि जवान के दिल में जोश-जुनून और हिम्मत न हो। यह पता होते हुए कि हम दुश्मन के क्षेत्र में जा रहे हैं जिंदा लौटेंगे या मर कर इसी बात का भी कोई पक्का पता नहीं होता है। लेकिन बावजूद इसके पैरा कमांडो ऐसे ऑपरेशनों को अंजाम देते रहे हैं वो भी अपनी हिम्मत के बलवूते।