गर्भवती महिलाएं अगर ज्यादा प्रदूषण के संपर्क में आती हैं, तो इसका असर उनके गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग की खास बनावटों पर भी पड़ सकता है। ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि एक रिसर्च में दावा किया गया है। ये अध्ययन ‘द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ’ नाम की जानी-मानी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित की गई है।
इस रिसर्च में पाया गया कि यह बदलाव बच्चे के दिमागी संतुलन, चलने-फिरने के तालमेल और विकास को धीमा कर सकते हैं। स्पेन के बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (ISGlobal) के रिसर्चर पायम दादवंद ने बताया कि प्रेग्नेंसी में बीच के समय से लेकर आखिरी महीने तक का समय बच्चे के दिमागी विकास के लिए बहुत अहम होता है। इस दौरान बच्चा बाहरी चीजों, जैसे प्रदूषण के असर को ज्यादा महसूस करता है।
बच्चे के विकास पर पड़ता है असर
डे सेंट पाउ अस्पताल और सेंट जोन डे डेउ अस्पताल की डॉक्टर एलिसा लुर्बा और लोला गोमेज रोइग ने बताया कि हम डॉक्टर के तौर पर देख रहे हैं कि भले ही प्रेग्नेंसी सामान्य ही क्यों न दिखे, लेकिन हवा में मौजूद प्रदूषण बच्चे के दिमाग पर थोड़े बहुत असर डाल सकता है।
खास तरह के अल्ट्रासाउंड का किया इस्तेमाल
इस रिसर्च के लिए वैज्ञानिकों ने साल 2018 से 2021 के बीच 754 मां-बच्चे की जोड़ी के डेटा का सर्वे किया। उन्होंने एक खास तरह के अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया जिसे ट्रांसवेजिनल न्यूरोसोनोग्राफी कहते हैं। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग का आकार और उसकी बनावटों को टेस्ट किया जाता है।
बच्चे के दिमाग के कुछ खास हिस्सों पर दिखा असर
सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5) और ब्लैक कार्बन जैसे प्रदूषक तत्व जब प्रेग्नेंट महिला के शरीर में एंटर करते हैं तो इसका असर बच्चे के दिमाग के कुछ खास हिस्सों पर पड़ता है। खासकर, दिमाग के दोनों तरफ मौजूद लेटरल वेंट्रिकल्स और नीचे की ओर मौजूद सिस्टरना मैग्ना नाम की जगह का आकार बढ़ जाता है।
सेरेबेलर वर्मिस की चौड़ाई में दिखी बढ़ोतरी
यह हिस्से ऐसे तरल से भरे होते हैं जो दिमाग को सहारा और सेफ्टी भी देते हैं। इसके अलावा, दिमाग के संतुलन और समन्वय के लिए जरूरी हिस्से सेरेबेलर वर्मिस की चौड़ाई में भी बढ़ोतरी देखी गई है। शोधकर्ता लौरा गोमेज-हेर्रेरा ने बताया कि इस रिसर्च में हमें ये देखने को मिलता है कि प्रदूषण किस तरह से गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग पर असर डालता है। इसे बाहरी माहौल के लिए और ज्यादा संवेदनशील बना देता है।