प्रियंका गांधी पर विश्वास ने किया पलटवार, कहा- 1984 के दंगों पर क्यों नहीं खौला था खून?

प्रियंका गांधी पर विश्वास ने किया पलटवार, कहा- 1984 के दंगों पर क्यों नहीं खौला था खून?

देश में हाल के दिनों में हुए भीड़ द्वारा लोगों को जान से मारने की घटनाओं पर प्रियंका गांधी वाड्रा के बयान पर आप नेता कुमार विश्वास ने पलटवार किया है। कुमार ने कहा, ‘ मौसमी नेताओं का खून मौसम और अपने लिए हितकर घटनाओं को देखकर ही खौलता है। 1984 के दंगों को लेकर प्रियंका का खून क्यों नहीं खौला?’प्रियंका गांधी पर विश्वास ने किया पलटवार, कहा- 1984 के दंगों पर क्यों नहीं खौला था खून?महागठबंधन: लालू प्रसाद यादव की रैली में शामिल नहीं होगा जदयू- श्याम रजक…

बता दें कि ट्रेन में जुनैद हत्याकांड, बिहार में बीफ ले जाने के शक में भीड़ का हमला, कश्मीर में डीएसपी की हत्या घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा था कि देश में लिंचिंग की घटनाओं को देखकर खून खौल उठता है। 

इस पर कुमार विश्वास ने रविवार को कहा कि लोकतंत्र में इतने वर्ष की आजादी के बाद सड़क पर इस तरह लोग समूह, जाति, धर्म और खाने पीने की पसंद के कारण मारे जाते हों, लेकिन राजनीतिक दलों का जो खून है वह मौसमी नेताओं का खून अपने लिए हितकर घटनाओं पर ही खौलता है।

कुमार ने तंज कसते हुए कहा कि 1984 के घटनाओं पर भी प्रियंका का खून खौलना चाहिए था। गांधी परिवार का खून खौलना चाहिए था। विश्वास ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अभी प्रियंका गांधी जैसी मौसमी नेता का खून उबल रहा है। राहुल अभी-अभी नानी के घर से लौटे हैं। अब उनका भी खून खौलने लगेगा। 

आप नेता ने तंज कसा, ‘दोनों भाई बहनों ने समय अंतराल बांट रखा है कि इनका जुलाई में खून खौलेगा उनका खून जून में खौलेगा।’ 

पीएम मोदी और पूर्व पीएम मनमोहन पर साधा निशाना

विश्वास ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के एक बयान का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा कि पूर्व पीएम ने बयान दिया था कि देश के प्राकृतिक संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है, तो उस समय भी खून खोलना चाहिए था। तब प्रियंका को कहना चाहिए था कि यह एक अजीब बयान है और देश सबके लिए समान है। 

आप नेता विश्वास ने पीएम मोदी पर भी जुबानी हमले किए। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में देश में कानून की व्यवस्था जैसी है वह बड़े-बड़े आधी रात के कार्यक्रमों से, बड़े-बड़े जलसों से, बड़े-बड़े स्टूडियो में दिए गए प्रधानमंत्री के भाषणों से शायद पूरी नहीं हो पाएगी। अगर हम लिंचिंग की घटनाओं को रोकने में नाकाम हो रहे हैं तो यह लोकतंत्र के लिए सोचने वाली बात है।

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