पीएम मोदी के फिलीस्तीन दौरे से पहले भारत में फिलीस्तीन के राजदूत ने यह उम्मीद जताई है कि फिलीस्तीन के साथ खड़े रहने के अपने पूर्व रुख पर भारत दृढ़ रहेगा. उन्होंने कहा कि फिलीस्तीन और इजरायल के बीच पीएम मोदी शांति दूत बन सकते हैं.
गौरतलब है कि अमेरिका द्वारा येरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करने के बाद अब फिलीस्तीन को भारत से ही उम्मीद है कि पीएम मोदी फिलीस्तीन की मदद करेंगे.
भारत में फिलीस्तीन के राजदूत अदनान अबू अलहाइजा ने आजतक-इंडिया टुडे से कहा कि अमेरिका ने पक्षपात कर अपने स्टैंड से समझौता किया है. इसीलिए फिलीस्तीन के लोग चाहते हैं कि ‘संयुक्त राष्ट्र के साथ कोई नई संस्था’ इजरायल और फिलीस्तीन के बीच मध्यस्थता करे. भारत और दूसरे देशों के लिए यह मुनासिब होगा कि फिलीस्तीन आंदोलन का कोई वास्तविक समाधान तलाशें.
उन्होंने कहा कि फिलीस्तीन में शांति लाने में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. अलहाइजा ने कहा, ‘पीएम मोदी के दोनों देशों से अच्छे रिश्ते हैं और मैं समझता हूं कि इस मामले में वह काफी अच्छी भूमिका निभा सकते हैं.खासकर यह देखते हुए कि भारत को फिलीस्तीन आंदोलन के इतिहास के बारे में अच्छी जानकारी है.’
उन्होंने कहा कि भारत ने इजरायल और फिलीस्तीन के साथ नाजुक रिश्तों के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश की है. दोनों देशों के साथ समान रिश्ता रखने की भारत की नीति को फिलीस्तीन में सकारात्मक तरीके से ही देखा जाता है, क्योंकि हम कोई इजरायल के ‘पुछल्ला’ नहीं हैं कि कोई राष्ट्राध्यक्ष इजरायल का मुख्य दौरा करे और फिर फिलीस्तीन में सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात के लिए आ जाए.
फिलीस्तीन के दूत ने कहा, ‘जब पीएम मोदी का इजरायल दौरा हुआ था, तो मैं भारतीय विदेश मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों से मिला था. उन्होंने मुझे बताया कि फिलीस्तीन को भारत एक स्वतंत्र देश की तरह ही समझता है और उसे इजरायल का ‘पुछल्ला’ नहीं समझता कि जब भी कोई इजरायल के दौरे पर जाता है तो वह फिलीस्तीन भी जाए. मुझे प्रधानमंत्री से मिलने का सौभाग्य मिला और उनको मैंने आमंत्रित किया. अब वह जॉर्डन के बाद यहां आ रहे हैं, इसका मतलब है कि वह फिलीस्तीन से एक स्वतंत्र देश की तरह बर्ताव कर रहे हैं. भारत लंबे समय से हमारा समर्थन करता रहा है और आगे भी करेगा.’
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