अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि अधिकतर विदेशी लोग श्रीकृष्ण के ही भक्त क्यों होते हैं श्रीराम भगवान या अन्य किसी भगवान के क्यों नहीं? यह सवाल बड़ा टेड़ा है लेकिन इसका उत्तर भी बहुत ही अजीब हो सकता है क्योंकि सही उत्तर को फॉरेनर ही बात सकते हैं। फिर भी कुछ सरल उत्तर तो दिए ही जा सकते हैं।
1. विदेश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और रशिया के लोगों की भारतीय धर्म में ज्यादा रुचि है। इसमें से कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो यहां का ज्ञान प्राप्त करके अपने यहां कुछ नया लिखते हैं या इन्वेंशन करते हैं, परंतु जिन्हें आध्यात्म की तलाश होती है वे किसी संत से जुड़कर भारतीय दर्शन और ज्ञान के साथ ही ध्यान करते हैं। अब यदि संत कृष्ण का भक्त है तो वे भी कृष्ण को जानते हैं और उसी की भक्ति करते हैं और यदि संत राम के भक्त हैं तो वे भी श्रीराम के भक्त बनकर उनका भजन करते हैं।
2. कोई भी विदेशी व्यक्ति सीधे तौर पर राम, कृष्ण या अन्य किसी भगवान से नहीं जुड़ता है उसे तो सबसे पहले भारत के संत ही प्रभावित करते हैं। अब देखिये ओशो रजनीश के पास जितने भी विदेशी शिष्य बने वे जरूरी नहीं कि कृष्ण या राम के भक्त हों। सत्यसांई बाबा के विदेशी भक्त सांई में भरोसा करते हैं। इसी तरह माँ अमृतानंदमयी के शिष्य शिव और माता के भक्त हैं। दक्षिण भारत के अधिकतर संतों के विदेशी शिष्य शिव से जुड़े हुए हैं।
3. भारत में साधुओं के लगभग 13 अखाड़े हैं। अधिकतर शैव अखाड़ों के आराध्य देव शिव है और इस अखाड़े में दीक्षा लेने वाले सभी विदेशी शिव के भक्त हैं। इसी तरह वैष्णव अखाड़े के विदेशी शिष्य राम और कृष्ण दोनों को ही मानते हैं।
4. हालांकि अधिकतर विदेशी लोग श्रीकृष्ण के ही भक्त क्यों हैं? इसका कारण है कि विदेशों में श्रीकृष्ण से जुड़े आंदोलन ज्यादा चले थे। ज्यादातर संतों ने विदेश जाकर श्रीकृष्ण की गीता पर ज्यादा प्रवचन दिए हैं क्योंकि श्रीराम ने तो कोई गीता कहीं नहीं। गीता भी एक कारण रही श्रीकृष्ण को प्रचारित करने में। रामकथा कहने और समझने में समय लगता है परंतु गीता को कहने और समझने में समय नहीं लगता। आजकल के मनुष्य के पास समय कहां है।
5. दूसरा सबसे बड़ा कारण रहा इस्कॉन। दुनिया में कृष्ण भक्ति का सबसे बड़ा आंदोलन और संगठन है इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस अर्थात इस्कॉन। इनका सबसे बड़ा मंत्र है ‘हरे रामा-हरे रामा, राम-राम हरे हरे, हरे कृष्ण-हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे’। दुनियाभार में यह मंत्र जपते-गाते हुए कई देशी और विदेशी लोग आपको न्यूयॉर्क, लंदन, बर्लिन, मास्को, मथुरा, वृंदावन की सड़कों पर मिल जाएंगे। इस आंदोलन की शुरुआत श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने की थी। अब यह आंदोलन नहीं रहा बल्कि एक बहुत बड़ा ‘कृष्ण समाज’ बन गया है। वृंदावन में ही इस्कॉन का सबसे बड़ा और सुंदर मंदिर है जहां पर विश्वभर में इस्कॉन से जुड़े लोग एकत्रित होते हैं और कृष्ण जम्मोत्सव मनाते हैं।
6. श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व ही ऐसा है जो स्वत: ही लोगों को आकर्षित करता है। राम और कृष्ण में सबसे बड़ा जो फर्क है वह व्यक्तित्व का और गीता उपदेश का है। राम का अवतार एक पूर्ण अवतार नहीं माना जाता है क्योंकि उनको 14 कलाएं ज्ञात थीं. श्री कृष्ण सोलह की सोलह कलाओं में पारंगत थे। आधुनिक मनुष्य को श्रीकृष्ण लुभाते हैं राम नहीं। श्रीराम को तो जीवन ही गीता था और उनका चरित्र तो सबसे उत्तम था परंतु आज के मनुष्य को यह समझ में नहीं आ सकता। लोग राम जैसा त्याग नहीं करना चाहते बल्कि श्रीकृष्ण जैसा जीवन जीना चाहते हैं। श्रीराम की अपनी सीमाएं हैं परंतु श्रीकृष्ण सभी सीमाओं से पार है, इसीलिए वे हर मनुष्य के मन में आसानी से बैठ जाते हैं जबकि राम ही पुरुषों में सबसे उत्तम है। जिस प्रभु के भक्त हनुमान हो उनके कहने ही क्या।