नई नौकरी पैदा करना मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है. 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी ने सत्तारूढ़ मनमोहन सरकार के मुकाबले अपने कार्यकाल के दौरान प्रति वर्ष 1 करोड़ नई नौकरी पैदा करने का वादा किया था. वहीं प्रति वर्ष लगभग 1 करोड़ नए लोग देश में नौकरी लेने के लिए कतार में खड़े हो जाते हैं. इस चुनौती के चलते बजट 2018-19 मोदी सरकार के लिए आखिरी मौका है जहां वह इस समस्या का हल निकालने की कवायद कर सकते हैं.
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गौरतलब है कि देश में नई नौकरी पैदा करने की रफ्तार मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान 2015 में निचले स्तर पर पहुंच गई जब महज 1 लाख 35 हजार नई नौकरियां पैदा की गई. जबकि 2014 के दौरान 4 लाख 21 हजार नौकरियां पैदा हुई थी और 2013 में यह आंकड़ा 4 लाख 19 हजार से अधिक रहा. यह आंकड़ा खुद केन्द्र सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है.
श्रम मंत्रालय की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान 2016 में बेरोजगारी का आंकड़ा 2016 के दौरान उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. जबकि 2014 और 2013 के दौरान देश में बेरोजगारी 4.9 और 4.7 फीसदी क्रमश: रही. इन आंकड़ों के चलते हाल में हुए गुजरात चुनावों में सत्तारूढ़ बीजेपी को ग्रामीण इलाकों में वोट बैंक दरकता दिखाई दिया.
जिसके बाद माना जा रहा है कि आगामी केन्द्रीय बजट में मोदी सरकार नई नौकरी के लिए बड़ा कदम उठा सकती है. जानकारों का दावा है कि मोदी सरकार देश में अपनी पहली रोजगार नीति का ऐलान कर सकती है. इस नीति के तहत सरकार की कोशिश एक विस्तृत रोडमैप के जरिए अलग-अलग सेक्टर में नए रोजगार के सृजन का रास्ता साफ करने का होगा.
माना जा रहा है कि केन्द्र सरकार श्रम युक्त सेक्टर में नई नौकरियां सृजन करने पर कंपनियों के लिए नए इन्सेंटिव का ऐलान भी कर सकती है जिससे वह ज्यादा से ज्यादा नौकरियां सृजन करने का काम करें. इसके साथ ही केन्द्र सरकार की कोशिश अंसगठित क्षेत्र में रोजगारों का रुख सामाजिक सुरक्षा से जोड़ते हुए संगठित क्षेत्र की तरफ मोड़ने का होगा जिससे केन्द्र सरकार अपने प्रति वर्ष 1 करोड़ नई नौकरी के लक्ष्य को प्राप्त कर सके.