कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों व संक्रमित रोगियों की मौत के बीच राहत देने वाली खबर आई है। नन्हे-मुन्नों के आगे कोरोना घुटने टेक रहा है। बच्चे संक्रमण की चपेट में आए, लेकिन पूरी तरह स्वस्थ हो गए। उन पर स्टेरायड और अन्य दवाओं के इस्तेमाल का बेहतर असर दिखा।
एलएलआर हॉस्पिटल (हैलट) के बाल रोग चिकित्सालय के चाइल्ड कोविड वार्ड और नियोनेटल वार्ड में डेढ़ दर्जन से अधिक बच्चे व किशोर स्वस्थ हुए हैं। इनकी उम्र कुछ दिन से लेकर 14 साल तक है। कुछ अन्य बच्चों के भी जल्दी ठीक होने की उम्मीद है। इनका रिकवरी रेट बेहद अच्छा रहा है। पांच से सात दिन में ये ठीक हो गए। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध जच्चा-बच्चा अस्पताल में एक महीने के अंदर 71 संक्रमित गर्भवती महिलाएं भर्ती हो चुकी हैं।
उनमें से 35 का सामान्य प्रसव और 22 का सीजेरियन हुआ। बाकी को होम आइसोलेशन के लिए भेजा गया है। प्रसव के बाद इनमें से करीब एक तिहाई बच्चे भी संक्रमण की चपेट में आ गए। उन्हें नियोनेटल वार्ड में भर्ती किया गया, जबकि उनकी माताओं को कोविड वार्ड में भेजा गया। चाइल्ड कोविड वार्ड में 15 बेड में कुछ महीने के छोटे बच्चे से लेकर 14 साल तक के किशोर को भर्ती किया जा रहा है। वहीं, कुछ दिन के बच्चों का नियोनेटल वार्ड में उपचार हो रहा है।
इनका ये है कहना
बच्चों में इम्यून सिस्टम विकासशील प्रक्रिया में रहता है। उनका दिल, गुर्दा, फेफड़े, लिवर बहुत अच्छे से काम करते हैं। इसीलिए वायरस का हमला उनपर कोई खास असर नहीं दिखा पाता है। उम्र बढऩे के साथ ही शरीर में कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं, जिससे वायरस का रिएक्शन खतरनाक होता है।
बच्चों के सेल्स में ऐश रिसेप्टर की संख्या बहुत कम रहती है। किसी भी तरह का वायरस इन्हीं रिसेप्टर से चिपककर सेल्स पर हमला करते हुए अंदर दाखिल होता है। बच्चों में संख्या कम होने के चलते वायरल लोड भी कम रहता है। –
बच्चों के गले में थायमस ग्लैंड होते हैं। यह 12 से 14 साल की उम्र तक आते-आते बिल्कुल खत्म हो जाते हैं। यही वायरस को रोकते हैं। यही वजह है कि गर्भवती महिलाओं पर संक्रमण का असर कम रहता है।
सभी महिलाएं और उनके बच्चे बिल्कुल स्वस्थ हैं। उनमें किसी तरह की कोई समस्या नहीं है। कुछ बच्चे संक्रमित हुए थे, उनका रिकवरी रेट बहुत अच्छा रहा