बलूचिस्तान की कहानी: जिन्ना और अंग्रेजों के धोखे से नहीं बन सका अलग देश

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित बोलान के पास मंगलवार को एक एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक कर लिया गया था। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ट्रेन में सवार करीब 450 लोगों को बंधक बना लिया था। 24 घंटे से ज्यादा तक पाकिस्तानी सेना और बीएलए के लड़ाकों के बीच चले संघर्ष के बाद आखिरकार इस ट्रेन को आजाद करा लिया गया। पाकिस्तानी सेना का कहना है कि उसने ट्रेन को अगवा करने वाले बीएलए के सभी लड़ाकों को मार गिराया है। वहीं, बीएलए ने भी इस घटना में कई सैन्य अधिकारियों को मारने की बात कही है।

बलूचिस्तान दुनिया के नक्शे पर कहां है? इसका इतिहास क्या है? आजादी से पहले भारत का हिस्सा रहे इस प्रांत के पाकिस्तान में जाने की कहानी क्या है? जिन्ना और ब्रिटिश सरकार के किस धोखे से बलूचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल होना पड़ा? आइये जानते हैं…

सबसे पहले जानते हैं कि आखिर दुनिया के नक्शे पर कैसी है बलूचिस्तान की स्थिति?
पाकिस्तान के नक्शे पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित बलूचिस्तान इस देश का सबसे बड़ा प्रांत है। पाकिस्तान के 8.81 लाख वर्ग किलोमीटर इलाके में करीब 40 फीसदी हिस्सा यानी 3.47 लाख वर्ग किमी अकेले बलूचिस्तान का है। आबादी के लिहाज से पाकिस्तान की 24.75 करोड़ की आबादी में से सिर्फ 1.49 करोड़ लोग बलूचिस्तान में बसे हैं। यानी पूरे पाकिस्तान की महज छह फीसदी आबादी यहां रहती है।

इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों खासकर यहां तेल-गैस की काफी मौजूदगी है। इसके अलावा यह क्षेत्र सोना और तांबा का भी भंडार माना जाता है। इसके बावजूद यहां रहने वाले कबायली समुदाय की हालत बेहद खराब है। पाकिस्तान में जारी इसी भेदभाव के चलते बलूचिस्तान में अलग-अलग समय पर आजादी की मांग उठती रही है। इसके लिए बलूचिस्तान में कई संगठनों का भी उदय हुआ। इन्हीं में से एक संगठन है- बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी, जिसने 11 मार्च 2025 को बोलान में एक सुरंग में जाफर एक्सप्रेस को हाईजैक किया।

बलूचिस्तान के साथ धोखाधड़ी की क्या है कहानी?
जब यह साफ हो गया कि ब्रिटिश शासन भारत से जा रहा है, तब बलूचिस्तान में मकरान, लास बेला, खरान और कलात के कबायली प्रमुखों में कलात के प्रमुख सबसे ताकतवर थे। उस वक्त अहमद यार खान कलात के खान यानी प्रमुख थे। भारत की आजादी के वक्त ब्रिटिश साम्राज्य ने यहां की रियासतों को दो विकल्प दिया। पहला- ये रियासतें भारत या पाकिस्तान के साथ मिल जाएं। या फिर दूसरा- स्वतंत्र रहें। उस वक्त अहमद यार खान ने बलूचिस्तान की आजादी की वकालत की।

बताया जाता है कि अहमद की इस मांग के पीछे उनकी मोहम्मद अली जिन्ना से निजी दोस्ती थी। उन्हें उम्मीद थी कि जिन्ना बलूचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल होने की जगह आजादी दिलाने में समर्थन देंगे। 11 अगस्त 1947 को पाकिस्तान ने उनका भरोसा बढ़ाते हुए अहमद यार खान के साथ दोस्ती की एक संधि की और उन्हें पाकिस्तान में जबरन शामिल कराने के लिए जोर नहीं दिया।

ब्रिटिश शासन ने क्यों नकारी आजादी की मांग?
भारत के बंटवारे के बाद जब बलूचिस्तान ने आजाद रहने पर जोर दिया तो इससे ब्रिटिश शासन की चिंता बढ़ गई। दरअसल, बीते कुछ वर्षों में ईरान-अफगानिस्तान के आसपास सोवियत संघ का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था। ऐसे में ब्रिटेन को चिंता थी कि अगर बलूचिस्तान को आजाद छोड़ दिया गया तो वह सोवियत शासन के प्रभाव में जा सकता है। इसी वजह से ब्रिटिश अफसर कलात को पाकिस्तान में ही शामिल कराना चाहते थे।

पाकिस्तान ने कैसे दिया धोखा?
कलात के प्रमुख अहमद यार खान के अंतर्गत बलूचिस्तान के क्षेत्रों को संभाल रहे तीन कबायली नेता पाकिस्तान में मिलने के लिए तैयार हो गए। इस स्थिति को भांपते हुए पाकिस्तान ने अक्तूबर 1947 में ही ‘दोस्ती की संधि’ को तोड़ते हुए पूरे बलूचिस्तान को शामिल कराने की कोशिशें शुरू कर दीं। 17 मार्च 1948 को पाकिस्तान सरकार ने कलात के अंतर्गत आने वाले तीन सामंती क्षेत्रों को अपने साथ शामिल करा लिया। इससे न सिर्फ कलात के खान की ताकत घट गई, बल्कि यह पूरा क्षेत्र चारों तरफ से जमीनी सीमाओं से भी घिर गया, जबकि पहले यह पूरा इलाका अरब सागर से जुड़ा था।

‘स्टेट एंड नेशन बिल्डिंग इन पाकिस्तान, बियॉन्ड इस्लाम एंड सिक्योरिटी’ किताब के मुताबिक, जब कलात पर पाकिस्तान में शामिल होने का दबाव बढ़ रहा था, उसी दौरान भारत में ऑल इंडिया रेडियो पर एक खबर चली। इसमें दावा किया गया कि कलात भारत के साथ शामिल होना चाहता है। हालांकि, पाकिस्तान ने इस खबर के प्रसारित होने के ठीक बाद 26 मार्च 1948 को अपनी सेना की एक बड़ी टुकड़ी बलूचिस्तान भेज दी। इसके बाद कलात के खान ने पाकिस्तान के साथ संधि का एलान कर दिया। माना जाता है कि पाकिस्तान के सैन्य अभियानों के डर से अहमद यार खान को यह फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ा।

समझौते की स्याही भी नहीं सूखी और शुरू हो गया संघर्ष
बलूचिस्तान ने मार्च 1948 में पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया और जुलाई 1948 में अहमद यार खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। यहीं से बलूचिस्तान में बागी संगठनों की नींव पड़ी। करीम ने बलूचिस्तान के पाकिस्तान के साथ जाने के फैसले का पुरजोर विरोध किया और क्षेत्र की स्वतंत्रता के लिए युद्ध छेड़े। 1948, 1958-59, 1962-63 और 1973-1977 के बीच पांच बार बलूच क्रांतिकारियों ने बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग के साथ पाकिस्तानी शासन के साथ जंग छेड़ी। बलूच नागरिकों का यह संघर्ष आज तक जारी है।

अलग बलूचिस्तान के लिए संघर्ष करने वाले दावा करते रहे हैं कि पाकिस्तानी सेना मासूमों को निशाना बनाती है। बलूच कार्यकर्ताओं को सरकारी एजेंसियों और पुलिस द्वारा अपहरण, टॉर्चर, बिना सबूतों के गिरफ्तारी और मौत के घाट उतारने की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं।
2011 में मानवाधिकार संगठन एम्नेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पाकिस्तानी सेना बलूच नागरिकों के खिलाफ ‘मारो और फेंको’ की नीति अपनाती है। सुरक्षाबल कई बार बलूच लोगों को जानकारी के लिए टॉर्चर करते हैं। इसके बाद वे बलूचों को गोली मार देते हैं और उनके शव को फेंक देते हैं। हालांकि, बलूचिस्तान में जुल्म के आंकड़े ठीक ढंग से मौजूद नहीं हैं। एक एनजीओ- वॉयस ऑफ बलूच मिसिंग पर्सन्स के मुताबिक, 2001 से 2017 के बीच ही 5000 से ज्यादा बलूच लोग लापता हुए।

बलूचिस्तान में पाकिस्तान को लेकर इस गुस्से की वजह क्या?
कलात के आखिरी खान कहे जाने वाले अहमद यार खान ने जब बलूचिस्तान की आजादी की मांग की थी, तब उन्होंने साफ किया था कि बलूच नागरिकों का मुस्लिम होने के अलावा सीधे तौर पर पाकिस्तान से कोई जुड़ाव नहीं है। यह बात काफी हद तक सच भी है। बलूचिस्तान का इतिहास, भाषा और संस्कृति पाकिस्तान में बसी बाकी पंजाबी और सिंधि आबादी से अलग है। सरकार से लेकर नौकरशाही तक में बलूच लोगों का प्रतिनिधित्व काफी कम है। कुछ ऐसी ही स्थिति पूर्वी पाकिस्तान की भी थीं। जो कि अब बांग्लादेश बन चुका है। भाषा और संस्कृति में अलग होने की वजह से पाकिस्तान के पहले ही दो टुकड़े हो चुके हैं। वही खतरा लगातार बलूचिस्तान पर मंडराता दिख रहा है।

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