20 जनवरी की रात को जिस वक़्त आप टीवी पर अपना पसंदीदा कार्यक्रम देखते हुए रात का खाना खा रहे थे ठीक उसी वक़्त दिल्ली के बवाना इंडस्ट्रियल इलाके में तीन फैक्ट्रियों में भीषण आग लग गई. इस अग्निकांड में कई मेहनतकश जिंदगियां झुलसने और दम घुटने की वजह से मृतकों की सूची का हिस्सा बन गईं. मृतकों में पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं.पता नहीं इस आग की जद में कौन-कौन आया, किसका क्या नाम था? कौन कहां का था? कौन सुबह की शिफ़्ट में था और कौन रात की शिफ़्ट करने आया था. वैसे भी ये सारी जानकरियां आ भी जाएं तो क्या? जिन्हें जाना था वो तो चले गए? अब जो होगा वो तो ज़िंदा लोगों के भुलावे के लिए होगा.
इस दुखद हादसे से जुड़ी कई तस्वीरें, कई ख़बरें और विश्लेषण अगले कुछ दिन आप पढ़ेंगे और देखेंगे. लेकिन इस घटना की एक ऐसी तस्वीर है जो आपके मन के रेगिस्तान में धंस जाएगी. घटना की यह तस्वीर मार्मिक तो है ही साथ ही दार्शनिक भी है. यह तस्वीर घटना की व्यापकता तो बताती ही है साथ ही आपके भीतर एक गहरा असर छोड़ जाती है.2013 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक कारख़ाना ढह गया था. घटना में 900 से ज़्यादा मौतें हुई थीं. इस घटना की एक तस्वीर है जिसमें एक आदमी और एक औरत एक दूसरे की बाहों में हैं लेकिन ज़िंदा नहीं मुर्दा. यह तस्वीर स्थानीय फ़ोटोग्राफ़र तस्लीम अख़्तर ने ली थी. इस तस्वीर को देखकर दुनियांभर के कई लोगों ने ख़ुद को उस घटना से जोड़ लिया था.
ठीक ऐसी ही एक तस्वीर इस अग्निकांड से भी आई है, लेकिन इस तस्वीर में दो औरतें हैं. उन्होंने एक दूसरे को पकड़ा हुआ है. लेकिन दोनों बुरी तरह से जल चुके हैं, झुलस चुके हैं. साथ-साथ मौत उन्हें इस दुनियां से ले गई.
सम्भव हो जब आग की लपटें पहली बार दिखी होंगी तो उन्होंने अपनी जान बचाने की कोशिश की होगी लेकिन जब लाख कोशिशों के बाद असफल हुई होंगी तो एक दूसरे को यूं पकड़ लिया होगा.
आधी रात से पहले यह तस्वीर हमें मिलीं और जब इसे देखा तो सोना मुश्किल हो गया. कई तरह के ख़्याल दिमाग में, मन में आए. पहले तो काफ़ी देर तक इनका नाम क्या होगा? कहां की होंगी ये दोनों? कब दिल्ली आए होंगे? कोई रिश्ता होगा इनका या डर की वजह से दोनों ने एक दूसरे को कसके पकड़ लिया होगा. कई बार डर भी रिश्ते बना देता है.
जब-जब कोई सवाल आया तब-तब मैंने इस तस्वीर को देखा. शायद उम्मीद थी कि मेरे सवालों के जवाब इस तस्वीर से ही मिल जाएंगे, लेकिन ऐसा होना कहां था.
खैर आखिर में मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि दो मेहनतकश महिलाएं थीं. दिन-रात साथ में मेहनत करती होंगी, खाना खाते हुए, घर-परिवार के किस्से बतियाती होंगी और इस निष्ठुर शहर में अपना और अपने परिवार का पेट पालने की कोशिश कर रही होंगी. नाम-पते में क्या रखा है. ये सब तो अमीरों के बनाए नियम हैं. इस नियम में इन्हें क्यों बांधा जाए.
साथ रहीं, साथ काम किया, मेहनत-मज़दूरी भी साथ-साथ करती थीं और आज जब मौत आई तो मौत से कहा होगा: हम सहेलियां हैं. मेहनत करने वाली सहेलियां, ले चलना है तो साथ ही ले चलो. मौत ने उनकी बात मान ली और उन्हें ले गई.