नई दिल्ली। दूध पीना स्वास्थ के लिए बेहद अच्छा माना जाता है। लेकिन मिलावट की मार झेल रही जनता दूध की शुद्धता को लेकर भी परेशान है। आम व्यक्ति ये नहीं समझ पाता कि जिस दूध का वो इस्तेमाल कर रहा है वो कितना शुद्ध है। कई बार तो मिलावटी दूध के चलते ही लोगों का स्वास्थ खराब हो जाता है। पर अब ऐसा नहीं होगा। दरअसल, पुणे शहर के रीसर्चरों ने एक ऐसी डिवाइस तैयार की है, जिसके जरिए महज दो मिनट में दूध की शुद्धता जांची जा सकती है। इस डिवाइस की कीमत महज 50 रूपए हैं। रीसर्चरों की टीम ने 30 मई को मंत्रालय में फूड ऐंड ड्रग्स ऐडमिनिस्ट्रेशन(FDA) और ड्रग्स ऐंड सिविल सप्लाइज मिनिस्टर गिरीश बापत के सामने डिवाइस का डेमो भी दिया।
दूध की शुद्धता जांचने की डिवाइस…
यह प्रॉडक्ट दो साल पहले राइट टु रीसर्च फाउंडेशन के रीसर्चरों द्वारा तैयार किया गया था। इस प्रॉडक्ट में कागज की 4 स्ट्रिप्स हैं और हर स्ट्रिप दूध के कॉम्पोनेंट्स की जांच करने में मदद करती है। इन स्ट्रिप्स की मदद से दूध में यूरिया, सॉल्ट, ग्लूकोज और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की मात्रा की जांच की जा सकती है। पेपर की स्ट्रिप पर दूध का एक ड्रॉप डाला जाता है और अगर दूध में मिलावट है तो स्ट्रिप का रंग बदल जाता है।
उदाहरण से समझिए। मान लीजिए दूध में यूरिया की जांच करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्ट्रिप का रंग पीला है। ऐसे में अगर दूध में मिलावट है तो स्ट्रिप का रंग गुलाबनुमा लाल हो जाएगा। वहीं, दूध में सॉल्ट की जांच करने की जाए तो सॉल्ट की मात्रा अधिक होने पर भूरे रंग की स्ट्रिप पीले में बदल जाएगी। ग्लोकोज के लिए रंगहीन स्ट्रिप का इस्तेमाल किया जाता है, इसकी मात्रा अधिक होने पर स्ट्रिप का रंग भूरे में बदल जाएगा और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड के केस में हल्के परपल रंग की स्ट्रिप गहरे नीले में बदल जाएगी।
इस डिवाइस को तैयार करने वाली रीसर्च टीम के सदस्य जयंत खांडरे ने कहा, ऐसी डिवाइस तैयार करने का आइडिया FDA कमिश्नर से मिला, जिन्होंने दूध में मिलावट के बढ़ते मामलों का जिक्र किया। उन्होंने बताया, ‘हमारा उद्देशय एक ऐसी डिवाइस तैयार करना था, जो सस्ती होने के साथ-साथ जांच में कम समय ले।
फिलहाल, दूध में मिलावट की जांच करने वाली डिवाइसेस की कीमत 500 रुपये के आसपास है, हम इसे महज 50 रुपये तक लाने में कामयाब हुए हैं। मंत्री चाहते हैं कि इस डिवाइस का दाम महज एक रुपये तक लाया जाए, लेकिन ऐसा तभी संभव होगा जब इसकी सप्लाई में बेतहाशा वृद्धि हो।’
खांडरे ने आगे कहा, ‘हम इस डिवाइस में स्टार्च और कास्टिक के इंडिकेटर्स जोड़ने पर काम कर रहे हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि दूध कहीं कृत्रिम तेल से तो नहीं बनाया गया है। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती इस डिवाइस को घर-घर तक पहुंचाने के लिए सप्लाई-चेन को मेनटेन करने की है।’