बार-बार रोना या गुस्सा हो सकता है बच्चे में स्ट्रेस का संकेत

सेहतमंद रहने के लिए मानसिक स्वास्थ्य का दुरुस्त रहना भी बेहद जरूरी है और इसी मकसद से हर साल 10 अक्टूबर को World Mental Health Day मनाया जाता है। इस मौके पर आज बात करेंगे बच्चों में बढ़ते स्ट्रेस की। कुछ ऐसे संकेत हैं जिनकी मदद से बच्चों में स्ट्रेस (symptoms of stress in children) की पहचान कर सकते हैं। आइए जानते हैं उन संकेतों के बारे में।

बचपन हर व्यक्ति के जीवन का सबसे सुंदर और यादगार समय होता है। बचपन के दिन अक्सर याद कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। हालांकि, अगर यही बचपन किसी बुरी याद या दौर से गुजरा हो, तो जीवनभर उसकी छाप मन में रह जाती है। बदलते समय के साथ आज के बच्चों का बचपन भी बदल चुका है। तेजी से बदलती तकनीक और सोच के एक तरफ फायदे हैं, तो साथ ही बहुत सारे नुकसान भी हैं। बच्चे पहले जैसे अब नेचर के साथ समय व्यतीत नहीं करते, वे बुक रीडिंग नहीं करते और न ही बहुत सोशल होते हैं।

ये सभी चीजें बच्चों के मेंटल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। दिनभर स्क्रीन के सामने समय बिताने की वजह से कई बार बच्चे तनाव का शिकार होने लगते हैं। बदलते दौर में बच्चे भी स्ट्रेस का शिकार होने लगे हैं। पिछले कुछ समय से बच्चों में भी स्ट्रेस (stress in kids) एक आम समस्या बनती जा रही है। ऐसे में World Mental Health Day के मौके पर आज जानेंगे बच्चों में स्ट्रेस के लक्षण (symptoms of stress in children) और इससे निटपने के तरीके-

ओवर सेंसिटिव
स्ट्रेस से पीड़ित बच्चे हमेशा रोने और सामान्य रहने की भावना के बीच फंसा हुआ महसूस करते हैं और छोटी सी बात पर भी तुरंत रो पड़ते हैं।

गुस्सैल और चिड़चिड़े
स्ट्रेस में होने पर बच्चे इस भावना को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं और मन में हो रही उलझन को अनावश्यक चिल्ला कर व्यक्त करते हैं। इन्हें गुस्सा भी जल्दी आता है।

अटेंशन की डिमांड
स्ट्रेस से पीड़िक बच्चे एक इंसिक्योरिटी में जीते हैं। यही कारण है कि खुद को सेफ महसूस कराने के लिए वे हर समय अटेंशन की डिमांड करते हैं। रोकर या चिल्लाकर वे अपनी तरफ सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं।

कम सोशल होना
बात बर्थडे पार्टी में जाने की हो या किसी भी रूप में कहीं सोशल होने की हो, ये ऐसे मौके पर खुद को पीछे कर लेते हैं। परिवार, दोस्त या टीचर्स किसी से भी ये खुल कर बात करने में संकोच करते हैं।

डर
इनके अपने डर होते हैं, जिनमें से अधिकतर बेबुनियाद लग सकते हैं, पर ये उनके लिए एक बड़ा डर का मुद्दा हो सकता है। जैसे अंधेरे से डर, अकेले रहने से डर, नई जगह और नए लोगों से मिलने का डर आदि।

अन्य
इसके साथ ही स्ट्रेस होने पर कुछ बच्चे रात में सोते हुए पेशाब कर सकते हैं। कुछ को रात में नींद ही नहीं आती या फिर भयानक सपने आते हैं। भूख कम हो सकती है और हर समय शरीर का कोई एक हिस्से में दर्द रहने की शिकायत रहेगी, फिर वो चाहे सिर दर्द हो या फिर पेट दर्द।

ऐसे करें बच्चों के स्ट्रेस को दूर-
बच्चे पर परफेक्ट बनने का दबाव न डालें।
बच्चे को तमाम क्लास ज्वाइन करा कर उसे हरफनमौला बनाने की अपनी ख्वाइश उस पर न थोपें।
बच्चे को आउटडोर गेम्स खेलने और नेचर के बीच कुछ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें।
सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम जितना संभव हो कम रखें।
ब्रीथिंग एक्सरसाइज करवाएं।
नियमित रूप से अफर्मेशन बोलने की आदत डालें।
बच्चों से ढेर सारी बातें करें और उन्हें सेफ महसूस कराएं।

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