नई दिल्ली: फ्रांस से खरीदे गए अत्याधुनिक रफाल फाइटर जेट्स के पहले स्क्वाड्रन (दस्ते) का बेस ईस्टर्न सेक्टर में बनाया जाएगा। यह विमान न्यूक्लियर हथियारों को ढोने में सक्षम है।
दरअसल, यह कदम भारत की उस नीति का हिस्सा है, जिसके तहत चीन को काउंटर करने के लिए पारंपरिक और न्यूक्लियर, दोनों तरह के हमलों की क्षमता को मजबूत करना है।
भारत ने इस योजना को अमल में लाने का फैसला ऐसे वक्त में किया है, जब परमाणु क्षमता वाले अग्नि-4 और अग्नि-5 मिसाइल के ट्रायल आखिरी दौर में हैं। अग्नि-3 को पहले ही सेना में शामिल किया जा चुका है।
इनमें ऊंचाई वाले इलाकों में ‘कोल्ड स्टार्ट’ की सुविधा भी शामिल है। इसके अलावा, बाकी खूबियों के साथ राफेल एक ताकतवर विकल्प बनकर उभरता है, जो 9.3 टन के हथियार ढोने में सक्षम है। यह हवाई सुरक्षा से लेकर जमीनी हमले से जुड़े मिशनों के लिए बेहद कारगर है।
एक अफसर ने बताया, ‘हाशिमपुरा एयरबेस पर फिलहाल मिग-27 जेट्स हैं, जो अगले दो से तीन साल में रिटायर हो जाएंगे। उन्हें रफाल से रिप्लेस किए जाएंगे। रफाल को बनाने वाली कंपनी के प्रतिनिधियों ने हाल ही में हाशिमपुरा का दौरा किया। इसका मकसद इस जेट के मेंटिनेंस और अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर के हालात की समीक्षा करना था।’अफसर ने बताया, ‘यूपी स्थित सरस्वा बेस उन जगहों में शामिल है, जहां रफाल की दूसरी टुकड़ी तैनात करने के बारे में विचार किया जा रहा है।’
भारतीय वायुसेना ने 10 दिन पहले ही अरुणाचल के सियांग जिले स्थित टूटिंग में भी एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) को शुरू कर दिया है। पूर्वी लद्दाख के अलावा अरुणाचल में शुरू किया गया यह छठा एएलजी है। इन सभी को शुरू करने का फैसला चीन के मद्देनजर लिया गया है। इसके अलावा, बंगाल के पानागढ़ बेस पर भी जल्द ही छह C-130J हरक्यूलिस एयरक्राफ्ट तैनात किए जाएंगे। पानागढ़ सेना के लिए नए बने 17 माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स का हेडक्वॉर्टर बनने जा रहा है।