फिल्म और संगीत निर्देशक विशाल भारद्वाज का कहना है कि फिल्म इंडस्ट्री काम करने के लिए बेहद खूबसूरत जगह है जहां फिल्म का यूनिट परिवार बन जाता है। उनका कहना है कि यहां ‘इनसाइड या आउटसाइड’ से ज्यादा प्रतिभा की पूछ होती है। मौजूदा दौर में जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री कई तरह के विवादों में घिरी है। कई बड़े सितारे आरोपों के घेरे में हैं और यहां के कामकाज के तरीके को लेकर इंडस्ट्री से जुड़े कई स्टार ही सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐसे वक्त में विशाल भारद्वाज एक अलग तस्वीर सामने रखते हैं।
स्क्रीनप्ले राइटर एसोसिएशन अवॉर्ड के एलान के दौरान विशाल भारद्वाज से जब हिंदी बॉलीवुड की ‘विषैली कार्य संस्कृति’ के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “व्यक्तिगत तौर पर मुझे ऐसा नहीं लगता है। हमारे वर्क कल्चर में इतनी मोहब्बत है कि फिल्म यूनिट परिवार बन जाती है।” विशाल भारद्वाज ने ‘हैदर’, ‘मकबूल’ और ‘ओमकारा’ जैसी फिल्मों से अपनी अलग पहचान बनाई है। उनके रचे संगीत को पसंद करने वालों का भी एक बड़ा तबका है।
हालिया विवाद पर इंडस्ट्री का पक्ष रखते हुए विशाल भारद्वाज ने कहा, “यहां इतना खूबसूरत वर्क कल्चर है, जिसमें न धर्म से लेना-देना है और न ही आउटसाइडर या इनसाइडर से। जो आज कल चल रहा है, मुझे लगता है ये सब बनाई हुई बकवास है। हम परिवार की तरह हैं। मैंने कभी अपने आप को यहां आउटसाइडर महसूस नहीं किया।”
हाल में कई कलाकारों ने आरोप लगाया है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बाहर से आनेवालों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसे लेकर बहस छिड़ी हुई है और कई खेमे बन गए हैं। विशाल भारद्वाज ने दावा किया, “जितना इमोशनल सपोर्ट यहां मिलता है वो किसी और जगह मिलना मुश्किल है। यहां कोई विषैली कार्य संस्कृति नहीं है।” विशाल भरद्वाज की राय में फिल्म इंडस्ट्री में लोग रातों-रात ‘स्टार या जोकर’ बन सकते है। वो कहते हैं कि यहां बड़े दांव लगते हैं और ‘जहां बड़े दांव लगते हैं, वहां बड़े दाम भी चुकाने पड़ते हैं।’
विशाल भरद्वाज इसे ‘लॉटरी सिस्टम’ कहते हैं। उनके मुताबिक, “यहां प्रतिभा रखने वाले लोगों की लॉटरी जरूर लगती है। फिर चाहे वो फिल्मी खानदान से ताल्लुक रखते हों या न रखते हों।” हालिया विवादों पर फिल्म इंडस्ट्री के ज्यादातर बड़े कलाकारों और निर्देशकों ने चुप्पी साधी हुई है।
लेकिन विशाल भारद्वाज खुलकर अपनी बात रखते हैं। वो कहते हैं कि अभी जो कुछ हो रहा है, उस पर रोक लगनी चाहिए। वो कहते हैं, “ये जो बर्बाद किया जा रहा है आजकल… सबको पता है कि दिलचस्पी कहां हैं? ये सब क्यों और किसलिए हो रहा है?। कृपया हमें (फिल्म इंडस्ट्री) माफ कर दीजिये। हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए हम लोग बहुत अच्छे हैं।”
विशाल भारद्वाज ने ‘बायोपिक’ फिल्मों चलन पर भी बेबाकी से अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, “अभी जिसे देखो, वो बायोपिक बना रहा है। मुझे बहुत ही चिढ़ होती है। मुझे ऐसी फिल्में देखना पसंद नहीं।” विशाल भारद्वाज कहते हैं कि जो लोग जीवित हैं उन पर बायोपिक बनाना समझ के परे है। वो कहते हैं कि गुरुदत्त, साहिर लुधियानवी या किशोर कुमार पर बायोपिक बनाने का विचार अच्छा हो सकता है लेकिन फिलहाल उन्हें ऐसा कोई किरदार नजर नहीं आ रहा है।
स्क्रीनप्ले राइटर एसोसिएशन इस साल अपनी ‘डायमंड जुबली’ मना रही है। एसोसिएशन ने फिल्म, टीवी और ओटीटी के लेखक और गीतकारों को पुरस्कार देने का एलान किया है जो रविवार को दिए जाएंगे।