Violence: कासगंज में एक बार फिर माहौल बिगाडऩे की कोशिश, धर्मस्थल पर की गयी तोडफ़ोड़!
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा था कि संविधान सरकार को सर्विलांस की इजाजत नहीं देता क्योंकि तकनीकी रूप से ही प्रत्येक लेनदेन, व्यक्ति की प्रोफाइल का पता लगाया जा सकता है। यहां तक कि तकनीकी के जरिये संवैधानिक कार्यप्रणालियों से भी समझौता किया जा सकता है।
पीठ ने कहा था कि विश्व की कोई प्रणाली सुरक्षित नहीं है और मुद्दा यह नहीं है कि डाटा कैसे जुटाए जाते हैं बल्कि यह है कि जुटाई गई सूचनाओं का किस प्रकार इस्तेमाल या दुरुपयोग किया जाता है। पीठ ने कहा था, ‘हम आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग के खतरों तथा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के दौर में रह रहे हैं।
इस लिए इनके बीच संतुलन बनाना जरूरी है।’ पीठ में जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण भी शामिल हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस केएस पुट्टास्वामी, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय, शांता सिन्हा और माकपा नेता वीएस अच्युतानंदन जैसे याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पूर्व सुरक्षा अधिकारी समीर केलकर और जे डीसूजा के हलफनामे का जिक्र करते हुए दलील दी कि आधार और इसके बाध्यकारी कानून से नागरिकों की निगरानी की जाएगी। आधार परियोजना के तहत व्यक्तियों के सभी आंकड़े सेंट्रल आइडेंटिटीज डाटा रिपोजिटरी (सीआईडीआर) में जमा रहेंगे सरकार किसी व्यक्ति के रिकॉर्ड को आजीवन जुटाए रख सकती है। संविधान सरकार को किसी व्यक्ति की निगरानी का अधिकार नहीं देता।