वहीं 18 जनवरी को हुई सुनवाई में आधार से जुड़े 3 मामले संवैधानिक पीठ के सामने उठाए गए थे, जिनमें सूचना की अखंडता और मौलिक अधिकारों के व्यापक उल्लंघन शामिल थे।
आपको बता दें कि सरकार की आधार योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम सुझाव दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि ऐसे समय में जब देश आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे खतरों से जूझ रहा है, सरकारी योजनाओं और नागरिकों की निजता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना जरूरी हो गया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा था कि संविधान सरकार को सर्विलांस की इजाजत नहीं देता क्योंकि तकनीकी रूप से ही प्रत्येक लेनदेन, व्यक्ति की प्रोफाइल का पता लगाया जा सकता है। यहां तक कि तकनीकी के जरिये संवैधानिक कार्यप्रणालियों से भी समझौता किया जा सकता है।
पीठ ने कहा था कि विश्व की कोई प्रणाली सुरक्षित नहीं है और मुद्दा यह नहीं है कि डाटा कैसे जुटाए जाते हैं बल्कि यह है कि जुटाई गई सूचनाओं का किस प्रकार इस्तेमाल या दुरुपयोग किया जाता है। पीठ ने कहा था, ‘हम आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग के खतरों तथा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के दौर में रह रहे हैं।
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