#बड़ी खबर: कभी जिनकी अगवानी में खड़े हुए, आज उन्हीं के मेहमान बन गए राष्ट्रपति कोविंद

#बड़ी खबर: कभी जिनकी अगवानी में खड़े हुए, आज उन्हीं के मेहमान बन गए राष्ट्रपति कोविंद

लगभग 21 घंटे के राजधानी प्रवास के पहले दिन सार्वजनिक कार्यक्रम में कोविंद ने जब यह कहा कि उन्हें यह बात काफी दिनों से कचोटती थी कि जिस उत्तर प्रदेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत नौ-नौ प्रधानमंत्री दिए, पर राष्ट्रपति एक भी नहीं।#बड़ी खबर: कभी जिनकी अगवानी में खड़े हुए, आज उन्हीं के मेहमान बन गए राष्ट्रपति कोविंद

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उन्होंने यह भी कहा, ‘मैं प्रदेश में आता रहूंगा। संवैधानिक बाध्यता व मर्यादा में रहते हुए जो भी संभव होगा, करूंगा’ तो लोगों के बीच यह संदेश साफ हो गया कि भले ही अब वे देश के प्रथम नागरिक की भूमिका में पूरे देश के हों लेकिन वे इसे उत्तर प्रदेश का ही योगदान मानते हैं।

स्वाभाविक रूप से उन्हें कार्यकर्ता से नेता और फिर इतने बड़े पद पर पहुंचने के साक्षी रहे उनके अपने लोगों को तथा उनकी पद-प्रतिष्ठा से अपने सम्मान व सरोकारों को जोड़कर देखने वालों को यह संदेश तो चला ही गया कि उत्तर प्रदेश से उनके रूप में पहला और वह भी दलित वर्ग के व्यक्ति के राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च आसन पर पहुंचने के पीछे जिस संगठन और जिन लोगों की भूमिका है, उन्हें याद रखने की जरूरत है। जाहिर है, इस भाव का जाने-अनजाने भाजपा को लाभ मिलना स्वाभाविक ही है।

सरोकारों के संदेश 

भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता। फिर पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता। उसके बाद पार्टी के प्रदेश महामंत्री के नाते पूरे राज्य और राजधानी में लोगों से संपर्क तथा संवाद।

लंबे समय तक संपर्क, संबंध और संवाद के सहारे लोगों में भाजपा की पकड़ और पैठ को मजबूत बनाने की कोशिश। फिर बिहार के राज्यपाल के रूप में रामनाथ कोविंद का लखनऊ और अपने गृहजिला कानपुर जाकर लोगों से मिलना-जुलना।

अब देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की जिम्मेदारी निभाने वाली भूमिका में लखनऊ और कानपुर के अपने लोगों के बीच आना। एक तरफ संवैधानिक पद की मर्यादा और दूसरी तरफ पुरानों संबंधों तथा सरोकारों के निर्वहन का कर्तव्य।

जाहिर है कि दोनों के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं था, पर राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद ने प्रदेश के दो दिन के दौरे में इस संतुलन को ही बेहतर ढंग से नहीं साधा बल्कि सफल होकर भी दिखाया।

कोई ‘अपना पुराना’, वह भी बड़ी जिम्मेदारी वाले पद के साथ अपने बीच आए तो यादें ताजा होना स्वाभाविक ही है।

वही हुआ भी। जो कोविंद कभी प्रदेश महामंत्री के नाते भाजपा के तमाम बड़े नेताओं के लखनऊ आगमन पर स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर इंतजार करते थे, उन्हीं कोविंद को जब हवाई अड्डे पर तमाम अपने लोग अगवानी के लिए खड़े मिले होंगे तो स्वाभाविक रूप से अतीत की यादें ही ताजा नहीं हुई होंगी बल्कि मन में कहीं न कहीं संकोच का भाव भी आया होगा।

पर, औपचारिकता का निर्वाह तो होना ही था। हवाई अड्डे से लेकर अंबेडकर महासभा तक और अंबेडकर महासभा से लेकर इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से उनके सम्मान में दिए गए रात्रि भोज तक।

कुछ से वे नजदीक से मिले। कुछ से आंखों ही आंखों में बात हो पाई। कई से तो सिर्फ हाथ हिलाकर ही भावों का आदान-प्रदान संभव हो पाया, पर इस दौरान एक काम और हुआ जो दिखाई तो नहीं दिया लेकिन संदेश स्वत: चला गया।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि पार्टी के नेता और प्रदेश महामंत्री का दायित्व निभाने के नाते रामनाथ कोविंद का लोगों से संपर्क और संबंध होना स्वाभाविक है। जब राष्ट्रपति के रूप में उनका आगमन हुआ तो यादें ताजा होनी ही थीं। राष्ट्रपति के रूप में कोविंद ने भी लोगों को अपनेपन का एहसास कराया।

यही वजह रही कि तमाम लोगों ने उनके साथ की पुरानी तस्वीरों को सोशल मीडिया पर डालकर अतीत के पलों को याद ही नहीं किया, लोगों को याद भी दिलाया कि एक आम आदमी आज ‘खास आदमी’ हुआ है। संबंधों में गणित का फॉर्मूला फिट नहीं बैठता।

राष्ट्रपति का पद राजनीति से ऊपर होता है, पर उनके इस अपनेपन का लाभ उनके ‘अपनों’ को मिलना स्वाभाविक ही है। जाहिर है, पाठक भी मानते हैं कि राष्ट्रपति के रूप में कोविंद भले ही भाजपा से दूर हों लेकिन उनके शब्द और सरोकार भविष्य में भाजपा का सहारा बन सकते हैं।

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