भगवान शिव को सोमवार का दिन अतिप्रिय है इसलिए ये दिन उन्हें समर्पित होता है। महादेव को भोलेनाथ भी बोला जाता है, क्योंकि वे इतने भोले हैं कि श्रद्धालु के श्रद्धाभाव से चढ़ाए हुए जल से ही खुश हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त महादेव की आराधना में बेलपत्र की भी खास अहमियत होती है। माना जाता है कि अगर शिव जी के श्रद्धालु केवल बेलपत्र या जल ही नियमित रूप से उन्हें अर्पित करें तो वे श्रद्धालुओं के सारे दुख दूर कर देते हैं। किन्तु क्या आपने सोचा है कि आखिर बेलपत्र शिव को इतनी पसंद क्यों है तथा उनका जलाभिषेक क्यों किया जाता है? आइए आपको बताते हैं।
दरअसल समुद्र मंथन के समय जब हलाहल जगह निकला तो उसके प्रभाव से दुनिया का विनाश होने लगा। इसे रोकने के लिए शिव जी ने हलाहल को पीकर अपने कंठ में रोक लिया। इसके कारण से उन्हें बहुत जलन होना आरम्भ हो गई तथा कंठ नीला पड़ गया। चूंकि बेलपत्र विष के असर को कम करता है लिहाजा देवी-देवताओं ने उनकी जलन को कम करने के लिए उन्हें बेलपत्र देना आरम्भ किया तथा शिव जी बेलपत्र चबाने लगे। इस के चलते उनके सिर को ठंडा रखने के लिए जल भी चढ़ाया गया। बेलपत्र और जल के असर से भोलेनाथ के शरीर में पैदा हुई गर्मी शांत हो गई। तत्पश्चात उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ गया। तभी से शिव जी पर जल एवं बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा आरम्भ हो गई।
बेलपत्र के हैं कुछ नियम:
1. बेलपत्र की तीन पत्तियों वाला गुच्छा प्रभु महादेव को अर्पित किया जाता है माना जाता है कि इसके मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है।
2. अगर शिव जी को सोमवार के दिन बेलपत्र अर्पित किया जाए तो उसे रविवार के दिन ही तोड़ लेना चाहिए क्योंकि सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ा जाता है। इसके अतिरिक्त चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा अमावस्या को संक्रांति के वक़्त भी बेलपत्र तोड़ने की मनाही है।
3. बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता। पहले से चढ़ाया हुआ बेलपत्र भी फिर से धोकर चढ़ाया जा सकता है।
4. बेलपत्र की कटी-फटी पत्तियां कभी भी नहीं चढ़ानी चाहिए। इन्हें खंडित माना जाता है।
5. बेलपत्र प्रभु महादेव को हमेशा उल्टा चढ़ाया जाता है। मतलब चिकनी सतह की ओर वाला वाला हिस्सा महादेव की मूर्ति से स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाएं। बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे तथा मध्यमा अंगुली की सहायता से चढ़ाएं। इसके साथ महादेव का जलाभिषेक भी अवश्य करें।