भारत देश में अनन्त मंदिर देखे जा सकते हैं और इसलिए इसे देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है। खास बात तो यह है कि भारत की धरती पर मौजूद हर छोटे से छोटे मंदिर के पीछे एक पौराणिक कथा विद्यमान है, जिसके अनुसार उस मंदिर के महत्व को समझा जाता है। आज हम आपसे एक ऐसे ही मंदिर के बारे में चर्चा करने वाले हैं, जो अपने आप में बहुत ही खास है। यह मंदिर रामायण काल से जुड़ा है। आज भी इसकी काफी मान्यता है। यह मंदिर कश्मीर में श्रीनगर से 14 किलोमीटर दूर गान्दरबल जिले के तुलमुल गांव में खीर भवानी के नाम से जाना जाता है।
माता दुर्गा के भावानी रूप को समर्पित ये मंदिर एक पवित्र पानी के चश्मे के ऊपर स्थित है। खीर भवानी देवी पर लगभग सभी कश्मीरी हिन्दू और बहुत से ग़ैर-कश्मीरी हिन्दुओं की भी आस्था है। इस मंदिर की स्थापना को लेकर एक कहानी सारे इलाके में प्रचलित है। कहते हैं की देवी खीर भवानी के मंदिर की स्थापना श्रीलंका में रावण ने किया था। रावण देवी का परम भक्त था और इसीलिए उन्होंने प्रसन्नं होकर दशानन को अपना मुदिर बनाने की अनुमति दी थी। कालांतर में रावण के गलत कार्यों से देवी रुष्ट हो गयीं और उन्होंने राम भक्त हनुमान को आदेश दिया कि वे उनकी मूर्ती को वहां से हटा कर कहीं और स्थापित करें। तब पवनपुत्र हनुमान ने उनको उठा कर कश्मीर के तुलमुल में स्थापित कर दिया। तब से देवी का ये मंदिर यहां पर स्थापपित है।
क्यों पड़ा खीर भवानी नाम
वैसे तो ये देवी दुर्गा का ही मंदिर है और इसके कई नाम है, जैसे महारज्ञा देवी़, राज्ञा देवी मंदिर, रजनी देवी मंदिर और राज्ञा भवानी मंदिर आदि परंतु इसका प्रचलित और आधिकारिक नाम खीर भवानी ही माना जाता है। इसे खीर कहानी क्यों कहते हैं? इसका कारण है कि इन देवी को पारंपरिक रूप से वसंत ऋतु में खीर चढ़ाई जाती है, इसलिए इनका नाम ‘खीर भवानी’ पड़ा। ऐसी भी मान्यता है कि किसी प्राकृतिक आपदा के आने से पहले मंदिर के कुण्ड का पानी काला पड़ जाता है, इस तरह से स्थानीय लोगों को संकट की सूचना पहले ही मिल जाती है।