वाघा बॉर्डर पर तैनात कांस्टेबल पुष्पेन्द्र, सुनन्दा, सागरिका, धनश्री, सुनीता चौधरी, दिलराज गिल, मंजू चौधरी कहती हैं कि उन्होंने देश की सुरक्षा करने की जो शपथ ली है, उसे वे सब अंतिम सांस तक निभाएंगी। सोच समझकर ही सेना में आने का फैसला लिया। यहां आकर पता चला कि सेना में महिलाओं का कितना सम्मान है। पहले सिर्फ ऑफिशियल या नर्सिंग जॉब के लिए महिलाओं को रखा जाता है,लेकिन अब बॉर्डर पर दुश्मनों की आंखों में आंखें डालकर बीएसएफ की महिला टुकड़ी खड़ी है।
इनके कंधों पर है दोहरी जिम्मेदारी
कांस्टेबल कुलविंदर कौर की साढ़े तीन साल की बेटी है। अपनी ड्यूटी से बचा पूरा समय वह अपनी मासूम बेटी के साथ ही बिताती हैं। उनकी सास भी इसमें सहयोग करती हैं। इसी तरह राजस्थान की मंजू चौधरी की शादी तीन साल पहले हुई थी। अब डेढ़ साल का बेटा है। दोनों बताती हैं कि देश सेवा पहले है बाकी जिम्मेदारियां उसके बाद। बीएसएफ में उनकी हर जरूरत का पूरा ध्यान रखा जाता है। मंजू बताती हैं कि मेरे फूफाजी फौज में थे। उनकी वर्दी देखकर उनमें सेना में जाने का जज्बा जागा। पिता का सपोर्ट मिला और वह बीएसएफ में भर्ती हो गई।
कुछ अलग करके दिखाना था इसलिए यह फील्ड चुना
फाजिल्का की दिलराज गिल का कहना है कि 12वीं के बाद घरवालों ने आगे पढ़ाने से मना कर दिया। उन्होंने घर में बैठने के बजाय जॉब करने की ठान ली। सेना में जाने का सपना था, सो पूरी लगन से तैयारियों में जुट गई। आखिरकार सपना पूरा हुआ और वह बीएसएफ की महिला बटालियन का हिस्सा बन गई। आज वर्दी पहनकर जब बॉर्डर पर खड़ी होती हूं तो अपने फैसले पर गर्व होता है। गांव में भी लोग उस पर गर्व करते हैं।
रिट्रीट सेरेमनी में भी महिला जवान
महिला जवान ने बताया कि अब वाघा बॉर्डर पर होने वाली रिट्रीट सेरेमनी में भी महिला जवान शामिल होती हैं। यहां महिलाओं के छह ग्रुप हैं, इनमें से रोजाना बारी-बारी से दो महिलाएं इसकी अगुवाई करती हैं। कोशिश की जाती हैं कि रिट्रीट के लिए बराबर कद वाला जोड़ा बनाया जाए। अब तो पाकिस्तान की तरफ से भी महिलाएं रिट्रीट सेरेमनी की शुरुआत करने लगीं हैं। रोजाना 10-15 हजार दर्शक इसे एन्जॉय करते हैं। हालांकि शनिवार और रविवार को यह संख्या बढ़ जाती है। रिट्रीट सेरेमनी में शामिल पुष्पेन्द्र और सुनन्दा का कहना है कि यह फील्ड बेटियों के लिए सबसे सुरक्षित है। यदि 100 सिवेलियन पुरुष बैठे हैं तो एक महिला पर कमेंट करने में संकोच नहीं करते लेकिन उनके फील्ड में पुरुष साथी महिला साथी को कमेंट करना तो दूर बल्कि पूरा सम्मान देते हैं।
दुनिया में केवल दो देश जहां यह सेरेमनी इकट्ठी होती है
अमृतसर से 32 किमी और लाहौर से 22 किमी की दूरी पर स्थित वाघा बार्डर एक ऐसी जगह है जहां पहुंचते ही आपके अंदर देशप्रेम की भावना जाग्रत होने लगती है। वंदे मातरम, जय हिंद के नारों से आपके अंदर एक अलग ही तरह का अहसास हिलोरे लेने लगता है जिसे आपने पहले देखा सुना तो होगा लेकिन इसे जिया वही जा सकता है। अटारी वाघा बॉर्डर पर आज जहां बीएसएफ और पाक रेंजर्स की रिट्रीट सेरेमनी देखने रोजाना हजारों लोग पहुंचते हैं। वहां 68 साल पहले ऐसा कुछ भी नहीं था। साधारण रूप से शुरू हुई इस परंपरा ने अब एक भव्य आयोजन का रूप ले लिया है। आहिस्ता-आहिस्ता यह फंक्शन इतना रोमांचक हो गया है कि रोजाना 10-15 हजार दर्शक यहां जुटते हैं और डांस, देशभक्ति के गानों के साथ इस आयोजन को एन्जॉय करते हैं।